Sunday, October 26, 2008

दीपाली मुबारक हो

लिखाड़ बस्ती के दोस्तों दीपोस्त्सव पर आप जो मांगें भगवान उससे दूना -तिगुना दे, आपकी हर मनोकामना पूरी हो , आपकी कलम हमेशा चलती रहे, इसी दुआ के साथ एक बार और दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें, बधाइयाँ,
शिवराज गूजर

Friday, October 24, 2008

मैं घर पर नही हूँ

राजू , अरे सुन तो बेटा,
मिसेज शर्मा की बात पूरी होने तक तो राजू जा चुका था दरवाजे से बाहर,
ये राजू भी न, जानकी देवी के बुलावे के बाद तो किसी की नही सुनता, मैं जब काम बताती हूँ तो ममा ये कर रहा हूँ , ममा वो कर रहा हूँ, लाख बहने हैं इसके पास,
बुदबुदाती हुई मिसेज शर्मा अपने काम मैं लग गयी,
उधर राजू जब जानकी देवी के पास पहुँचा तो वह खाना पकाने की तयारी मैं थी, राजू को देखते ही बोली,
सुबह तू कहाँ चला गया था,
वो मोसी के यहाँ चला गया था, क्यों कोई काम था,
हाँ वो सब्जी लानी थी, सुबह भी दाल ही बनाई,
अभी ले आऊंगा आंटी,
राजू का ध्यान जानकी देवी की बातों मैं कम और इधर उधर देखने मैं जयादा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को दूंद रहा हो, अंत मैं उससे रहा नही गया और उसने पूछ ही लिया,
आंटी , सीमा दिखाई नही दे रही आज,
अरे हाँ मैं तुम्हें बताने ही जा रही थी, वो सुबह पापा आए थे, उसे भी साथ ले गए, कह गए थे अबउसके गाँव की स्कूल मैं ही भरती कराएँगे,
ओह, अब कब आएगी,
आने का तो कुछ नही कह सकती बेटा, वो तो मेरे कहने से दामाद जी ने कुछ दिन के लिए मेरे पास छोड़ दिया था,
यह सुनते ही राजू बिना कुछ बोले चल दिया, बाहर की औरयह देख जानकी देवी ने उसे आवाज दी,
अरे बेटा, सब्जी तो ले आ,
बाद मैं देखूँगा आंटी, कल टेस्ट है पदाई करनी है।
राजू बुदबुदाता हुआ घर मैं घुसा तो मिसेज शर्मा ने पूछ लिया,
क्या हुआ बेटा, किस पर नाराज हो रहे हो,
कुछ नही ममा, लोग सबको अपनी तरह फालतू समझते हैं, जब देखो, बेटा ये ले आओ, बेटा वो ले आओ, आगे से जानकी आंटी कभी आवाज लगाये तो कह देना मैं घर पर नही हूँ,
शिवराज गूजर

Thursday, October 23, 2008

नेता

वोट देकर हाथ अभी डीला भी नही पड़ा है
झोली फैलाये वो फिर मेरे दर पर खड़ा है

जाति के नाम मजहब के नाम दे दे बाबा
अदद वोट की रट पकडे मेरे पीछे पड़ा है

पिछली बार माँगा था जिसकी बुराई करके
उसी दल का पट्टा अब गले मैं बांधे खड़ा है

पिछले वादों का तो हिसाब अभी किया नही
नए वादों का और वो पुलंदा लिए खड़ा है

सड़क, नल, बिजली, नौकरी जो चाहे मांगले
फकीर दर पर देखो खुदा बन कर खड़ा है
(रचना पुरानी है लेकिन राजस्थान मैं दिसम्बर मैं विधानसभा चुनाव होने के कारन वर्तमान मैं प्रासंगिक है )
शिवराज गूजर

Wednesday, October 15, 2008

मेरे सामने शरमा रही है

योन शिक्षा पर लिखी गयी पुस्तक के लेखक का टीवी के लिए इंटरव्यू चल रहा था, उन्होंने पुस्तक मैं पुरजोर तरीके से यह बात उठाई थी कि बच्चों को योन शिक्षा डायनिंग टेबल पर दी जानी चाहिए , अपने लेखन मैं उन्होंने अपनी धर्मपत्नी का बराबर का हाथ बताया था, जाहिर था उनके साथ उनकी अर्धांगिनी का भी इंटरव्यू जरूरी था, लेकिन वो बोलने मैं बार-बारअटक रही थी, हमने समझा वो कैमरे के सामने ख़ुद को असहज महसूस कर रही है सो उन्हें खोलने के लिए कहा, आप बोलिए मैडम, यह तो रिहर्सलहै फाइनल टेक बाद मैं लेंगे, तभी लेखक महोदय बीच मैं ही बोल पड़े, नही ऐसी कोई बात नही है, योन संबंधों की बात है न, इसलिए ये मेरे सामने झिजक रही है, यह कह कर वे भीतर चले गए, अब इंटरव्यू निर्बाध चल रहा था,
शिवराज गूजर

Wednesday, October 1, 2008

एक अलग से नौकर रख लो

सुबह -सुबह मोनू उठकर
माँ से बोला आँखें भरकर
मम्मी पड़ने मैं नही जाना
मुस्किल चलना बैग उठाकर

मैं नन्हा सा बालक मम्मी
थेला है भारी भरकम
इस्कूल तक जाते -जाते
भर जाता है मेरा दम

या तो किताबें कम कर लो
या एक अलग से नौकर रख लो
बहुत वजन है मम्मी इसमे
चाहो तो तुम परख लो

भर आया दिल ममता का
सुनकर बोल दुलारे के
ना बेटा ना, नही रोते हैं
हैं नियम पड़ाई के न्यारे से

पड़ते -पड़ते जब लाला तू
ऊंची कक्षा मैं जाएगा
बेग -बाग़ कुछ न रखेगा
बस एक कापी ले जाएगा

बात सुनी जो मम्मी की
मोनू बड़ा हर्षाया
पलटा जाने को इस्कूल
हंसकर बेग उठाया
शिवराज गूजर

468x60 Ads

728x15 Ads