Tuesday, December 30, 2008

कागजी योग्यता

दिल्ली के लिए नयी बस सेवा शुरु होनी थी, लंबा रूट होने के कारन चालक का परफेक्ट होना जरूरी था, इसको देखते हुए परिवहन निगम के अधिकारी ने रिकॉर्ड देख कर ऐसा चालक खोजने के निर्देश दिए जिसका अब तक का सेवा रिकार्ड बिल्कुल कलीन हो, जिस पर कोई चार्ज नही लगा हो,
काफी खोजबीन के बाद एक ५० वर्षीय चालक ऐसा मिला, ३० साल की सेवा मैं उसपर कोई चार्ज नही लगा था, उसका रूट १५ किलोमीटर दूर एक गाँव तक था, उसमें भी बीच मैं पड़ने वाले गावों मैं स्टाप थे, रूट पर ट्रफिक जैसी कोई प्रॉब्लम भी नही थी,
अधिकारी ने उसे सलेक्ट कर लिया, जब चालक को यह पता चला तो वह परेसान हो गया, वो कभी दिल्ली नही गया था, उसने साथियों से पूछा दिल्ली जाने मैं कितने दिन लग जाते हैं, नाईट स्टाप कहाँ होगा, यह जानना उसके लिए बहुत जरूरी था क्योंकि सात बजे बाद उसकी लाइटगुल हो जाती थी, लोगों ने समझा मजाक कर रहा है, सो किसी ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया, कंडेक्टर ने जरूर आश्वासन दिया की वो रूट के बारे मैं परेशान न हो, कोई प्रॉब्लम होगी तो वो संभाल लेगा,
और फिर वो दिन भीआ गया , मंत्री जी ने हरी झंडी दिखाकर बस को रवाना किया, पाँच किलोमीटर ही बस चली होगी की चालक ने रोक दी, कंडेक्टर कुछ पूछता तब तक तो वह गायब हो चुका था झाडियों के पीछे. १५ मिनट मैं आया तब तक सवारियां कंडेक्टर का माथा खा चुकी थी, आते ही लोगों को गुस्सा देखा तो, फट पड़ा अब क्या मूतने भी नही जाऊं. ऐसी पता नही क्या देर हो रही है. खेर फ़िर बस रवाना हुई, धर कूंचा धर मंझला रास्ता फलांगती हुयी. इस एक घंटे के सफर मैं कितनी ही बार मूतना हो गया तो कितनी ही बार चाय पीना. और फ़िर मिडवे से पहले ही दिख गया एक दबा. बस क्या था रोक दी बस और जा पसरे खाट पर. अब तो लोगों के साथ साथ कंडेक्टर के भी गले तक आ गयी थी. उसने मुख्य बस स्टैंड पर फ़ोन कर दिया. स्थिति को भाँपते हुए दूसरा चालक भेजा गया तब जाकर बस रवाना हो सकी.
शिवराज गूजर

Wednesday, December 24, 2008

मेरी क्रिसमस

लिखाड़ दोस्तों को क्रिसमस मुबारक हो, सान्ता
सबके अरमान पूरे करे, किसी का कोई सपना अधूरा न रहे,
मेरी क्रिसमस ,

Wednesday, December 17, 2008

नास्तिक

मैं बस में बेठा बाहर हो रही बरसात का मजा ले रहा था

कोई आएगा इस पर

अजनबी आवाज सुनकर मैं मुडा, आवाज के मालिक पर नजर गई, उम्र यही कोई २५ -३० साल, आंखों पर नजर का चस्मा चड़ाये, महाशय सवालिया नजरों से मुझे देख रहे थे,

फिलहाल तो नही

मैंने उसका मुआयना करते हुए कहा,

आप कहाँ तक जायेंगे ?

उसने धम्म से बैठते हुए दूसरा सवाल दाग दिया,

टोडारायसिंह, और आप,

बात बढाने की गरज से मैंने पूछा

भांसू

उसकी बात ख़त्म होने के साथ ही बस झटके से आगे बाद गई, बस चलने के साथ ही बातों का सिलसिला चल निकला, बात चलते-चलते आ पहुंची दुनिया के सृजक पर , उसके अस्तित्व के होने न होने पर, इस बात को लेकर हम दोनों मैं बहस छिड़ गई, वह उसके अस्तित्व को पूरी तरह नकार रहा था, और मैं इस बात पर अदा था की वो इस दुनिया मैं है चाहे किसी भी रूप मैं हो। मेरे अपने तर्क थे तो उसकी अपनी काटें, इससेपहले की हमारी बहस उग्र होती ब्रेकों की चरमराहट के साथ ही बस रुक गयी, पता चला की नदी मैं पानी ज्यादा आ गया है, जो पुल पर से बह रहा है, ऐसे मैं बस पुल पर से नही गुजर सकती, पानी उतरने मैं देर लगनी थी सो हम भी उतर आए नीचे, नदी के दोनों और वाहनों की लाइन लगी थी, इधर वाले इस किनारे खड़े थे तो उधर वाले उस किनारे, तभी एक ट्रक आया, उसमें से चालक और खलाशी उतरे पानी का अंदाजा लगाया और ट्रक घुसा ले गए पानी मैं, देखते ही देखते ट्रक नदी के पार निकल गया,

यह देख हमारी बस के चालक को भी जोश आ गया और उसने भी घुसा दी बस पानी मैं, नदी के बीच मैं पहुँचते ही बस ने अचानक धक्का सा खाया, इसी के साथ पूरी बस श्रीजी के जयकारों से गूँज उठी,

सबसे पहले जय बोलने वाला मेरी बगल मैं बैठा वाही शख्स था जो पूरे रस्ते ऊपरवाले के अस्तित्व को नकार रहा था,

शिवराज गूजर



Sunday, December 14, 2008

छंटनी

मंदी की मार सबसे ज्यादा पड़ी है प्राइवेट कम्पनियों के कर्मचारियों पर, रातों की नींद उड़ गयी है, रात की पारी मैं काम करने वाले तो खेर पहले भी रात को नही सो पाते थे, लेकिन ये जगराता उससे अलग है, हर समय छंटनी की तलवार सर पर लिए काम करना, कुछ कम हिम्मत का काम नही है भाई, मेरे एक कार्टूनिस्ट दोस्त ने उनका दर्द कुछ इस तरह से व्यक्त किया,

शिवराज गूजर

Wednesday, December 10, 2008

लिखे को कोन मानता है

बेचारी महिलाएं तो खड़ी हैं और ये कैसे फेलकर बेठे हैं,

मुडा तो देखा बगल वाली सीट पर बेठे सज्जन अपने साथी से मुखातिब थे, उन्होंने एक बार पूरी बस में नजर घुमाई] सायद अपनी बात का असर देख रहे थे, फिर बोले-

जबकि सीट के ऊपर साफ़ लिखा है -केवल महिलाओं के लिए,

उनकी बात ख़त्म होते-होते उनसे सहमत एक और सज्जन बोल पड़े-

ऐसा ही है भइया यह कलजुग है, लिखे को कौन मानता है, अब देखो न सबसे ज्यादा लघु शंका उस दीवार पर की गयी होती है जिस पर लिखा होता है, यहाँ पिसाब करना मना है,

एक और सज्जन बोल पड़े -

गुटखे पर साफ़ लिखा होता है -स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, फिर भी लोग खाते हैं ,

सबके साथ में भी उनकी बातों से सहमत होने लगा था, सोच रहा था सही कह रहे है ये लोग, हम लिखे पर कहाँ ध्यान देते हैं, तभी कशेले धुँए ने मेरी तंद्रा तोड़ दी, मैंने मुड़कर उस शोकीन को देखा जो बस में धुम्रपान कर रहा था, यह वही शख्स था जो
पूरे रास्ते लिखे हुए नियमों की जबरदस्त पैरवी कर रहा था. उसके सामने ही बस मैं लिखा था -धुम्रपान करना मना है.
शिवराज गूजर

Sunday, December 7, 2008

बस नाम बदलने हैं

आज राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम आ जायेंगे, दो चार दिन मैं सरकार भी बन जायेगी, लेकिन होगा क्या, कुछ भी नही, वही पुराने चावल होंगे, ये जरूर है कि कुछ दाने नए हों, लेकिन उससे फर्क क्या पड़ेगा स्वाद मैं, मंत्री तो वरिष्ठ ही बनेंगे, नयों को मोका मिलेगा तो वो भी अपने बड़ों के पदचिन्हों पर ही चलेंगे, ऐसे मैं क्या उम्मीद कि जा सकती है, नयेपन की, राज्य मैं बीजेपी आयी तो सेण्टर के माथे सारे कांड, कांग्रेस आयी तो वो ही पुराना जुमला पिछली सरकार ऐसा बिगाड़ गयी है सुधरने मैं तो वक़्त लगेगा ही,
कुछ नही बदलने वाला है दोस्त, तुम चाहे कितना ही चाहलो, बदलना भी चाहो तो आप्शन नही है मेरे दोस्त, चुनना तो उनमें से ही है न जो चुनाव लड़ रहे हैं,
शिवराज गूजर

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