Thursday, December 31, 2009

अलविदा

उसने कहा
मैं जा रही हूं
हमेशा-हमेशा के लिए
तुमसे दूर
बस, जो बचे हैं पल
वो गुजार लो
हंसी-खुशी
मेरे संग
क्या-खोया
क्या-पाया
इसका हिसाब
लगा लेना
कल
अभी तो हूं मैं तुम्हारे
और तुम मेरे साथ
सुनो,
जब मैं चली जाऊंगी
तुम उदास मत होना
रोना भी मत
न घंटों बैठ कर
डूबते सूरज को निहारने में
अपना वक्त बरबाद करना
अगली सुबह
तुम उठना
एक नई ऊर्जा के साथ
एक नये कल की शुरुआत के लिए
अच्छा अलविदा
मेरे हमदम
जाती हुई
2009 की आखिरी शाम
का आखिरी सलाम।
'हैप्पी न्यू इयरÓ

Tuesday, December 29, 2009

यह कैसी मस्ती?

यह कैसी मस्ती है, जिसमें घरवालों की भावनाओं का, अपने शरीर को होने वाली क्षति का कोई स्थान नहीं है।
मैं पुलिया के नीचे घुसने के लिए मोड़ पर मुड़ा ही था कि सामने से स्कूटी पर तेज गति से आ रही दो युवतियां मेरी बाइक से भिड़ते-भिड़ते बचीं। मेरा जी धक से रह गया। मेरी हड़बड़ाहट पर उनकी हंसी छूट गई। मुंह से हुरर्र करती हुई वो फुरर्र हो गईं। वो तो अपनी राह चली गईं लेकिन मुझे बहुत देर लगी खुद को संयत करने में। अभी-अभी बेटे को डेयरी से दूध दिलाकर घर के बाहर छोड़कर आया था। एक दम से पूरा परिवार आंखों के आगे घूम गया। मन के किसी कोने से सवाल उठा, मुझे कुछ हो जाता तो। सोचों के साथ-साथ मेरी बाइक भी बड़ी जा रही थी। मुझे पुलिया के ऊपर से होकर जाना था। घूमकर जब पुलिया पर चढऩे लगा तो दूसरी तरफ लगी भीड़ पर नजर गई। शायद कोई दुर्घटना हुई थी। अपना इलाका था, सो बाइक साइड में रोकी और वस्तुस्थिति जानने को उतरा। देखा एक आदमी स्कूटी उठा रहा था, और एक युवती का चेहरा खून से लथपथ और एक उसी की हमउम्र उसे संभाल रही थी। लड़की पलटी तो मुंख खुला का खुला रह गया। ये तो वही युवतियां थीं जो मुझसे टकराती-टकराती बचीं थी। बुझे मन से मैंने बाइक उठाई और चल दिया अपनी राह। मन में यही उथल-पुथल मची थी। यह कैसी मस्ती है, जिसमें घरवालों की भावनाओं का, अपने शरीर को होने वाली क्षति का कोई स्थान नहीं है।

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