1
हां ! भई
अब क्यों आएगा तूं
गांव।
कौन है अब तेरा यहां।
तेरी लुगाई
और तेरे बच्चे
ले गया तू शहर
यह झिड़की सुननी पड़ती है
हर उस बेटे को
जो आ गया है शहर
रोजी-रोटी कमाने।
आया था जब वो शहर
अकेला था
सो भाग जाता था गांव
सप्ताह-महीन में।
अब यह नहीं हो पाता
इतनी जल्दी
क्योंकि-
अब बढ़ गई है जिम्मेदारियां
अनजान शहर में
किराए के मकान में
बच्चों को किसके भरोसे छोड़
हो आए हर सप्ताह गांव
और फिर गांव जाना भी तो
अब हो गया है महंगा
बच्चों की फीस और घर-खर्च
ही निगल जाते हैं महीने का वेतन
ऐसे में गांव पैसा भिजवाना
भी नहीं हो पाता मुमकिन
कई-कई महीने
2
उनका सोचना भी
नहीं है गलत
पेट भरने भर के लिए
शहर में परेशान होना
कहां की समझदारी है
घर पर खेती है
इतना तो
यहीं कमा लेगा
उतनी मेहनत करके
और फिर
पेट ही भरना है तो
वो तो जानवर भी भर लेते हैं।
शिवराज गूजर
Saturday, July 31, 2010
Thursday, July 8, 2010
मंदरो-मंदरो मेह
मंदरो-मंदरो बरसे मेह
मन हरसावे मिनखां रो
जीव-जनावर राजी होग्या
रूप निखरग्यो रूंखां रो
करषां का खिलग्या मुखड़ा
देख मुळकता खेतां ने
बैठ मेड़ पै गावे हाळीड़ा
छोड़ माळ में बेलां ने
हरख्यो-हरख्यो दीखे कांकड़
ओढ्यां चादर हरियाळी
ढांढा छोड़ खेलरया ग्वाळ्या
छोड़ आपणी फरवाळी
मन हरसावे मिनखां रो
जीव-जनावर राजी होग्या
रूप निखरग्यो रूंखां रो
करषां का खिलग्या मुखड़ा
देख मुळकता खेतां ने
बैठ मेड़ पै गावे हाळीड़ा
छोड़ माळ में बेलां ने
हरख्यो-हरख्यो दीखे कांकड़
ओढ्यां चादर हरियाळी
ढांढा छोड़ खेलरया ग्वाळ्या
छोड़ आपणी फरवाळी
शिवराज गूजर
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