Saturday, January 29, 2011

काश! पलक जानती-यह तीली कितना जलाती है

शिवराज गूजर
एक आठ साल की बच्ची पलक के बस में जिंदा जल जाने की खबर ने अंदर तक हिला कर रख दिया। खबर यूं थी कि -बच्ची ने पिता द्वारा सिगरेट के पैकेट के साथ छोड़ी गई माचिस के साथ बाल-सुलभ छेडख़ानी की। तीली जली, मजा आया और वो खेलने लगी। खेल-खेल में कब कपड़ों में आग लगी पता नहीं चला। सोचकर देखिए, क्या वो पिता अपने आपको कभी माफ कर पाएगा जिसकी-सिगरेट पीने की आदत ने उससे प्यारी सी बेटी छीन ली। माचिस की तीली जब-जब उसके हाथ में आएगी दिल के किसी न किसी कोने में अपनी बेटी के लिए हूक जरूर उठेगी।
बच्चों के प्रति लापरवाही की यह अकेली घटना नहीं है। ऐसे वाकये आए दिन सुनने और पढऩे को मिलते रहते हैं। हम और आप ही में से किसी की छोटी सी गलती या तो पलक जैसे मासूम की जान ले लेती है या  फिर उसे जिंदगी भर का दर्द दे जाती है। काश! पलक यह जानती कि माचिस की तीली से निकली आग कितनी भयानक हो सकती है। अगर उसे पता होता तो वह शायद छूती भी नहीं।
...क्योंकि हम मनुष्य हैं
जहां तक मैं समझता हूं, मां-बाप होने का मतलब सिर्फ इतनाभर नहीं होता कि हमने उसे पैदा किया और बढ़ा कर दिया। अपने बच्चों का लालन-पालन तो जानवर भी जी लगाकर करते हैं। उसे जिंदगी जीने लायक बनाना और अच्छे - बुरे का ज्ञान कराना भी जन्म देने वालों के ही जिम्मे है, क्योंकि हम मनुष्य हैं। हम एक समाज में रहते हैं और समाज के अपने कुछ नियम कायदे हैं। अगर समाज में रहना है तो उन्हें फॉलो करना ही होगा।
अजनबियों की न सुनें, न उनका दिया कुछ खाएं
कुछ ही दिनों में ऐसी कुछ घटनाएं जयपुर में देखने को आईं, जिनमें बच्चों को उनके मां-बाप की मौत का भय दिखा कर ठग जेवर व नकदी उड़ा ले गए। उन्होंने यह बात घरवालों को भी नहीं बताई क्यों कि उन्हें डराया गया था कि ऐसा करने से संकट  जल्द आ सकता है। इन घटनाओं में बच्चों की क्या गलती बताएं-सबकी तरह वे भी अपने मां-बाप को बहुत प्यार करते हैं और उन्हें नहीं खोना चाहते थे। माता-पिता या अन्य परिजनों को चाहिए था कि वे बच्चों को बताते कि किसी भी अजनबी से रास्ते में बात नहीं करें। अगर कोई रुपए पैसे की मांग करे तो समझ जाना चाहिए कि यह कोई गलत आदमी है और वे उसकी बात मानने का दिखावा करते हुए वहां से चल दें और इसकी सूचना घर पर दें। यह भी समझाएं कि कोई अगर कुछ खाने को दें तो इनकार कर देें। ऐसा नहीं भी कर पाएं तो लेकर रख लें खाएं नहीं, बाद में उसे कहीं फेंक दें। ऐसा इसलिए करें-क्योंकि आजकल बच्चों के अपहरण में लिप्त गिरोह टॉफी या अन्य खाने की चीजों का लालच देकर भी बच्चों को बहलाते हैं।
विकृत मानसिकता वालों से रहें दूर
विकृत मानसिकता वाले लोगों के संबंध में भी बच्चों को जागरूक बनाएं। उन्हें ऐसे लोगों की हरकतों के बारे में समझाने के साथ ही इन परिस्थियों से निपटने को भी तैयार करें। ऐसे मामलों में बेटियों के प्रति खास सतर्क रहने की जरूरत है। इन दिनों जिस तरह की घटनाएं देखने में आ रही है, उस हिसाब से लड़कियों, खासकर छोटी उम्र की, को बाहर के लोगों से ज्यादा परिचितों से खतरा है। मेरा मतलब यह कतई नहीं है कि सभी परिचित ऐसे ही होते हैं, लेकिन यह तो मानोगे ना किसी के माथे पर शरीफ नहीं लिखा रहता। कहते हैं ना-लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई।
जब घर में अकेले हों बच्चे
ऐसे दंपती जो नौकरीपेशा हैं, उनके लिए बच्चों के प्रति सजगता ज्यादा जरूरी है। उन्हें समझाएं कि जब वे अकेले हैं तो पीछे से घर पर आने वालों के लिए सीधा दरवाजा नहीं खोलें। पहले की होल से देखें-अगर अजनबी चेहरा है तो भीतर से ही मना कर दें। परिचित हो तो भी मम्मी-पापा के आने पर ही आने को कहें। सजगता के बावजूद भी यदि कुछ अनचाहा घट जाता है तो ऐसी परिस्थियों में घबराने की बजाय शांत रहें। पुलिस, दमकल और परिजनों जैसे महत्त्वपूर्ण नंबर लिखकर रखें ताकि ऐसे हालात में परेशानी नहीं हो। हां! पुलिस और दमकल जैसे नंबर देते समय बच्चों को इन विभागों की अहमियत समझाएं ताकि उनकी नासमझी से कोई परेशानी न हो।

2 comments:

shivraj gujar said...

thanks babu bhai. aap mere blog par aaye bahut achha laga. umeed hai aap isi tarah mera honsla badate rahenge.

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