Tuesday, December 30, 2008

कागजी योग्यता

दिल्ली के लिए नयी बस सेवा शुरु होनी थी, लंबा रूट होने के कारन चालक का परफेक्ट होना जरूरी था, इसको देखते हुए परिवहन निगम के अधिकारी ने रिकॉर्ड देख कर ऐसा चालक खोजने के निर्देश दिए जिसका अब तक का सेवा रिकार्ड बिल्कुल कलीन हो, जिस पर कोई चार्ज नही लगा हो,
काफी खोजबीन के बाद एक ५० वर्षीय चालक ऐसा मिला, ३० साल की सेवा मैं उसपर कोई चार्ज नही लगा था, उसका रूट १५ किलोमीटर दूर एक गाँव तक था, उसमें भी बीच मैं पड़ने वाले गावों मैं स्टाप थे, रूट पर ट्रफिक जैसी कोई प्रॉब्लम भी नही थी,
अधिकारी ने उसे सलेक्ट कर लिया, जब चालक को यह पता चला तो वह परेसान हो गया, वो कभी दिल्ली नही गया था, उसने साथियों से पूछा दिल्ली जाने मैं कितने दिन लग जाते हैं, नाईट स्टाप कहाँ होगा, यह जानना उसके लिए बहुत जरूरी था क्योंकि सात बजे बाद उसकी लाइटगुल हो जाती थी, लोगों ने समझा मजाक कर रहा है, सो किसी ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया, कंडेक्टर ने जरूर आश्वासन दिया की वो रूट के बारे मैं परेशान न हो, कोई प्रॉब्लम होगी तो वो संभाल लेगा,
और फिर वो दिन भीआ गया , मंत्री जी ने हरी झंडी दिखाकर बस को रवाना किया, पाँच किलोमीटर ही बस चली होगी की चालक ने रोक दी, कंडेक्टर कुछ पूछता तब तक तो वह गायब हो चुका था झाडियों के पीछे. १५ मिनट मैं आया तब तक सवारियां कंडेक्टर का माथा खा चुकी थी, आते ही लोगों को गुस्सा देखा तो, फट पड़ा अब क्या मूतने भी नही जाऊं. ऐसी पता नही क्या देर हो रही है. खेर फ़िर बस रवाना हुई, धर कूंचा धर मंझला रास्ता फलांगती हुयी. इस एक घंटे के सफर मैं कितनी ही बार मूतना हो गया तो कितनी ही बार चाय पीना. और फ़िर मिडवे से पहले ही दिख गया एक दबा. बस क्या था रोक दी बस और जा पसरे खाट पर. अब तो लोगों के साथ साथ कंडेक्टर के भी गले तक आ गयी थी. उसने मुख्य बस स्टैंड पर फ़ोन कर दिया. स्थिति को भाँपते हुए दूसरा चालक भेजा गया तब जाकर बस रवाना हो सकी.
शिवराज गूजर

Wednesday, December 24, 2008

मेरी क्रिसमस

लिखाड़ दोस्तों को क्रिसमस मुबारक हो, सान्ता
सबके अरमान पूरे करे, किसी का कोई सपना अधूरा न रहे,
मेरी क्रिसमस ,

Wednesday, December 17, 2008

नास्तिक

मैं बस में बेठा बाहर हो रही बरसात का मजा ले रहा था

कोई आएगा इस पर

अजनबी आवाज सुनकर मैं मुडा, आवाज के मालिक पर नजर गई, उम्र यही कोई २५ -३० साल, आंखों पर नजर का चस्मा चड़ाये, महाशय सवालिया नजरों से मुझे देख रहे थे,

फिलहाल तो नही

मैंने उसका मुआयना करते हुए कहा,

आप कहाँ तक जायेंगे ?

उसने धम्म से बैठते हुए दूसरा सवाल दाग दिया,

टोडारायसिंह, और आप,

बात बढाने की गरज से मैंने पूछा

भांसू

उसकी बात ख़त्म होने के साथ ही बस झटके से आगे बाद गई, बस चलने के साथ ही बातों का सिलसिला चल निकला, बात चलते-चलते आ पहुंची दुनिया के सृजक पर , उसके अस्तित्व के होने न होने पर, इस बात को लेकर हम दोनों मैं बहस छिड़ गई, वह उसके अस्तित्व को पूरी तरह नकार रहा था, और मैं इस बात पर अदा था की वो इस दुनिया मैं है चाहे किसी भी रूप मैं हो। मेरे अपने तर्क थे तो उसकी अपनी काटें, इससेपहले की हमारी बहस उग्र होती ब्रेकों की चरमराहट के साथ ही बस रुक गयी, पता चला की नदी मैं पानी ज्यादा आ गया है, जो पुल पर से बह रहा है, ऐसे मैं बस पुल पर से नही गुजर सकती, पानी उतरने मैं देर लगनी थी सो हम भी उतर आए नीचे, नदी के दोनों और वाहनों की लाइन लगी थी, इधर वाले इस किनारे खड़े थे तो उधर वाले उस किनारे, तभी एक ट्रक आया, उसमें से चालक और खलाशी उतरे पानी का अंदाजा लगाया और ट्रक घुसा ले गए पानी मैं, देखते ही देखते ट्रक नदी के पार निकल गया,

यह देख हमारी बस के चालक को भी जोश आ गया और उसने भी घुसा दी बस पानी मैं, नदी के बीच मैं पहुँचते ही बस ने अचानक धक्का सा खाया, इसी के साथ पूरी बस श्रीजी के जयकारों से गूँज उठी,

सबसे पहले जय बोलने वाला मेरी बगल मैं बैठा वाही शख्स था जो पूरे रस्ते ऊपरवाले के अस्तित्व को नकार रहा था,

शिवराज गूजर



Sunday, December 14, 2008

छंटनी

मंदी की मार सबसे ज्यादा पड़ी है प्राइवेट कम्पनियों के कर्मचारियों पर, रातों की नींद उड़ गयी है, रात की पारी मैं काम करने वाले तो खेर पहले भी रात को नही सो पाते थे, लेकिन ये जगराता उससे अलग है, हर समय छंटनी की तलवार सर पर लिए काम करना, कुछ कम हिम्मत का काम नही है भाई, मेरे एक कार्टूनिस्ट दोस्त ने उनका दर्द कुछ इस तरह से व्यक्त किया,

शिवराज गूजर

Wednesday, December 10, 2008

लिखे को कोन मानता है

बेचारी महिलाएं तो खड़ी हैं और ये कैसे फेलकर बेठे हैं,

मुडा तो देखा बगल वाली सीट पर बेठे सज्जन अपने साथी से मुखातिब थे, उन्होंने एक बार पूरी बस में नजर घुमाई] सायद अपनी बात का असर देख रहे थे, फिर बोले-

जबकि सीट के ऊपर साफ़ लिखा है -केवल महिलाओं के लिए,

उनकी बात ख़त्म होते-होते उनसे सहमत एक और सज्जन बोल पड़े-

ऐसा ही है भइया यह कलजुग है, लिखे को कौन मानता है, अब देखो न सबसे ज्यादा लघु शंका उस दीवार पर की गयी होती है जिस पर लिखा होता है, यहाँ पिसाब करना मना है,

एक और सज्जन बोल पड़े -

गुटखे पर साफ़ लिखा होता है -स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, फिर भी लोग खाते हैं ,

सबके साथ में भी उनकी बातों से सहमत होने लगा था, सोच रहा था सही कह रहे है ये लोग, हम लिखे पर कहाँ ध्यान देते हैं, तभी कशेले धुँए ने मेरी तंद्रा तोड़ दी, मैंने मुड़कर उस शोकीन को देखा जो बस में धुम्रपान कर रहा था, यह वही शख्स था जो
पूरे रास्ते लिखे हुए नियमों की जबरदस्त पैरवी कर रहा था. उसके सामने ही बस मैं लिखा था -धुम्रपान करना मना है.
शिवराज गूजर

Sunday, December 7, 2008

बस नाम बदलने हैं

आज राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम आ जायेंगे, दो चार दिन मैं सरकार भी बन जायेगी, लेकिन होगा क्या, कुछ भी नही, वही पुराने चावल होंगे, ये जरूर है कि कुछ दाने नए हों, लेकिन उससे फर्क क्या पड़ेगा स्वाद मैं, मंत्री तो वरिष्ठ ही बनेंगे, नयों को मोका मिलेगा तो वो भी अपने बड़ों के पदचिन्हों पर ही चलेंगे, ऐसे मैं क्या उम्मीद कि जा सकती है, नयेपन की, राज्य मैं बीजेपी आयी तो सेण्टर के माथे सारे कांड, कांग्रेस आयी तो वो ही पुराना जुमला पिछली सरकार ऐसा बिगाड़ गयी है सुधरने मैं तो वक़्त लगेगा ही,
कुछ नही बदलने वाला है दोस्त, तुम चाहे कितना ही चाहलो, बदलना भी चाहो तो आप्शन नही है मेरे दोस्त, चुनना तो उनमें से ही है न जो चुनाव लड़ रहे हैं,
शिवराज गूजर

Monday, November 17, 2008

डर

रामू नया -नया जयपुर आया था गाँव से , पुलिया के नीचे आदमियों की भीड़ ज्यादा दिखी तो वहीं बगल मैं लगा लिया मूंगफली का ठेला, अभी बोहनी भी नही हुयी थी किएक आदमी आया और ठेले मैं से मुठी भर कर मूंगफली उठाई और चलता बना, रामू ने उसे आवाज देकर पैसे के लिए कहा तो भद्दी सी गाली देते हुए रामू को मरने के लिए झपटा, रामू भी कोई कम नही था, अभी-अभी बीसवें साल मैं कदम रखा ही था, सरीर भी माता-पिता के लाड और झुमरी गायके दूध कि बदोलत आसपास के गाँव मैं किसी का नही था ऐसा पाया था, ऐसे मैं वो कहाँ दबने वाला था, एक ही दावमैं उस आदमी को जमीन दिखा दी, और फ़िर जो लगा दे दनादन जो उसे तबला बना दिया, तभी भीड़ मैं से कोई चिल्लाया
अरे ये तो बिल्लू दादा है , आब ये ठेले वाला तो गया कम से, दादा की इजाजत के बगेर तो इस इलाके मैं पत्ता भी नही हिलता,
रामू के हाथ जहाँ के तहां रुक गए, सीन बदल गया था, अब हाथ दादा के चल रहे थे और रामू गिडगिडा रहा था, माफ़ी मांग रहा था,
शिवराज गूजर

Sunday, November 9, 2008

भूख स्वाद नही देखती

पप्पू बुरी तरह घबरा गया था, हड़बड़ी मैं किसी और का आर्डर मिस्टर बवेजा को दे आया था, बवेजा का गुस्सा वो पहले देख चुका था, नमक कम होने पर ही वो कई बार खाना फ़ेंक चुका था, कंपकंपाता वो डाबा मालिक रामलाल के पीछे जाकर खड़ा हो गया, राम लाल ने उसे इसतरह खड़ा देखा तो डाँटते हुए बोला
अबे ओये पप्या यहाँ खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है, ग्राहकों को क्या तेरा बाप देखेगा,
लेकिन पप्पू वहां से हिला तक नही, यह देख रामलाल समझ गया कि कुछ गड़बड़ हो गयी है, उसने पप्पू कों पुचकारा तो उसने सारीबात बता दी, मामला समझने के बाद रामलाल के चहरे पर भी चिंता कि लकीरें दिखाई देने लगी, लेकिन अब क्या हो सकता था,
अब क्या होगा दादा,
पप्पू ने डरते हुए पूछा,
वही होगा जो मंजूरेबवेजा होगा,
रामलाल इससे ज्यादा नही बोल सका,
तभी किसी ग्राहक ने आवाज दी,
हाँ भइया कितना देना है,
रामलाल ने देखा बवेजा काउंटर पर खड़ा था, लेकिन वह सामान्य नजर दिखाई दे रहा था, गुस्से का कोई भावः उसे नही दिखा, तो उसकी चिंता ख़त्म हो गयी और उसने पप्पू से पूछ कर पेमेंट ले लिया,
जब वह चला गया तो पप्पू रामलाल के पास आकर बोला,
आज तो कमल ही हो गया दादा, नमक कम होने पर ही थाली फ़ेंक देने वाला सादा खाना खाकर खाकर चला गया और वो भी बिना कुछ बोले,
भूकस्वाद नही देखती पप्या भूख मैं भाटे भी स्वादिस्ट लगते हैं,
पप्पू के कुछ समझ मैं नही आया था, लेकिन उसने समझने वाले अंदाज मैं सर हिला दिया,
शिवराज गूजर

Friday, November 7, 2008

इसलिए है पत्रकारों मैं खुजली

आज प्रेसक्लब में कोफी के साथ बातों का दौर चल रहा था, बातों-बातों में बात पत्रकारों में एक -दूसरे की टांग खींचने की प्रवृति पर आ गयी, अशोक थापलियालजी ने इसका बड़े मजेदार ढंग से विवेचन किया, बोले यह खुजली अनलिमिटेड है,इसका सम्बन्ध पोरानिक काल से है, एक बार ब्रह्माजी की दाडी में खुजली हो गयी, तो सलाह मशविरे के बाद दाडी कटवाने का निर्णय लिया गया, हज्जाम बुलाया गया, हज्जाम रस्ते में नारद से टकरा गया, हड़बड़ी का कारन जाने बिना नारदजी उसे कहाँ छोड़ने वाले थे, सारीबात पता चलने पर उन्होंने हज्जाम से एक वचन ले लिया कि वो दाडी के बाल कहीं फेंकने के बजाय उन्हें लाकर देदे, हज्जाम ने ऐसा ही किया, नारदजी ने सारे बाल अपने कमंडल में डाले और मृत्यु लोक में छिड़क दिए, उससे जो जीव पैदा हुए वो पत्रकार बने, इसलिए सुनो छोरों ये खुजली अनलिमिटेड है, लाइलाज है, सो सब भूल -भाल कर मस्त रहो, लेट अस एन्जॉय,

शिवराज गूजर

Saturday, November 1, 2008

क्या इसी दिन के लिए लिया था गोद

क्या बताऊँ बीटा मैं तो अपने घर मैं ही बेगानी सी हो गयी, वो डोकरा (अपने पति की और इशारा करते हुए) भी बहुत दुखी है, पेरों से लाचार होने के कारन कुछ नही कर सकता, बस मुह से कहता रहता है, लेकिन सुने कोण, सब जगह ताले डालकर चाबी कमर मैं खोंस कर घूमती है महारानी, मेरे कोंसी तीन चार बेटियाँ है बस एक ही तो है लेकिन अभी से ही तरस गयी है मइके को, मैं इसे गोद नही लेती तो कम से कम एक ही दुःख होता की मेरे बेटा नही है, लेकिन अब तो मेरे सो दुःख हो गए हैं, क्या इसी दिन के लिए मैंने इसे गोद लिया था, यह कहते कहते काकी अपनी आंखों मैं आयी बाद नही रोक पाई और ओदनी के कोर से आंसू पोंछती हुयी, अपनी झुकी कमर को हाथ मैं पकड़ी लाठी पर संभालती हुई चलदी अपने घर.

Sunday, October 26, 2008

दीपाली मुबारक हो

लिखाड़ बस्ती के दोस्तों दीपोस्त्सव पर आप जो मांगें भगवान उससे दूना -तिगुना दे, आपकी हर मनोकामना पूरी हो , आपकी कलम हमेशा चलती रहे, इसी दुआ के साथ एक बार और दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें, बधाइयाँ,
शिवराज गूजर

Friday, October 24, 2008

मैं घर पर नही हूँ

राजू , अरे सुन तो बेटा,
मिसेज शर्मा की बात पूरी होने तक तो राजू जा चुका था दरवाजे से बाहर,
ये राजू भी न, जानकी देवी के बुलावे के बाद तो किसी की नही सुनता, मैं जब काम बताती हूँ तो ममा ये कर रहा हूँ , ममा वो कर रहा हूँ, लाख बहने हैं इसके पास,
बुदबुदाती हुई मिसेज शर्मा अपने काम मैं लग गयी,
उधर राजू जब जानकी देवी के पास पहुँचा तो वह खाना पकाने की तयारी मैं थी, राजू को देखते ही बोली,
सुबह तू कहाँ चला गया था,
वो मोसी के यहाँ चला गया था, क्यों कोई काम था,
हाँ वो सब्जी लानी थी, सुबह भी दाल ही बनाई,
अभी ले आऊंगा आंटी,
राजू का ध्यान जानकी देवी की बातों मैं कम और इधर उधर देखने मैं जयादा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को दूंद रहा हो, अंत मैं उससे रहा नही गया और उसने पूछ ही लिया,
आंटी , सीमा दिखाई नही दे रही आज,
अरे हाँ मैं तुम्हें बताने ही जा रही थी, वो सुबह पापा आए थे, उसे भी साथ ले गए, कह गए थे अबउसके गाँव की स्कूल मैं ही भरती कराएँगे,
ओह, अब कब आएगी,
आने का तो कुछ नही कह सकती बेटा, वो तो मेरे कहने से दामाद जी ने कुछ दिन के लिए मेरे पास छोड़ दिया था,
यह सुनते ही राजू बिना कुछ बोले चल दिया, बाहर की औरयह देख जानकी देवी ने उसे आवाज दी,
अरे बेटा, सब्जी तो ले आ,
बाद मैं देखूँगा आंटी, कल टेस्ट है पदाई करनी है।
राजू बुदबुदाता हुआ घर मैं घुसा तो मिसेज शर्मा ने पूछ लिया,
क्या हुआ बेटा, किस पर नाराज हो रहे हो,
कुछ नही ममा, लोग सबको अपनी तरह फालतू समझते हैं, जब देखो, बेटा ये ले आओ, बेटा वो ले आओ, आगे से जानकी आंटी कभी आवाज लगाये तो कह देना मैं घर पर नही हूँ,
शिवराज गूजर

Thursday, October 23, 2008

नेता

वोट देकर हाथ अभी डीला भी नही पड़ा है
झोली फैलाये वो फिर मेरे दर पर खड़ा है

जाति के नाम मजहब के नाम दे दे बाबा
अदद वोट की रट पकडे मेरे पीछे पड़ा है

पिछली बार माँगा था जिसकी बुराई करके
उसी दल का पट्टा अब गले मैं बांधे खड़ा है

पिछले वादों का तो हिसाब अभी किया नही
नए वादों का और वो पुलंदा लिए खड़ा है

सड़क, नल, बिजली, नौकरी जो चाहे मांगले
फकीर दर पर देखो खुदा बन कर खड़ा है
(रचना पुरानी है लेकिन राजस्थान मैं दिसम्बर मैं विधानसभा चुनाव होने के कारन वर्तमान मैं प्रासंगिक है )
शिवराज गूजर

Wednesday, October 15, 2008

मेरे सामने शरमा रही है

योन शिक्षा पर लिखी गयी पुस्तक के लेखक का टीवी के लिए इंटरव्यू चल रहा था, उन्होंने पुस्तक मैं पुरजोर तरीके से यह बात उठाई थी कि बच्चों को योन शिक्षा डायनिंग टेबल पर दी जानी चाहिए , अपने लेखन मैं उन्होंने अपनी धर्मपत्नी का बराबर का हाथ बताया था, जाहिर था उनके साथ उनकी अर्धांगिनी का भी इंटरव्यू जरूरी था, लेकिन वो बोलने मैं बार-बारअटक रही थी, हमने समझा वो कैमरे के सामने ख़ुद को असहज महसूस कर रही है सो उन्हें खोलने के लिए कहा, आप बोलिए मैडम, यह तो रिहर्सलहै फाइनल टेक बाद मैं लेंगे, तभी लेखक महोदय बीच मैं ही बोल पड़े, नही ऐसी कोई बात नही है, योन संबंधों की बात है न, इसलिए ये मेरे सामने झिजक रही है, यह कह कर वे भीतर चले गए, अब इंटरव्यू निर्बाध चल रहा था,
शिवराज गूजर

Wednesday, October 1, 2008

एक अलग से नौकर रख लो

सुबह -सुबह मोनू उठकर
माँ से बोला आँखें भरकर
मम्मी पड़ने मैं नही जाना
मुस्किल चलना बैग उठाकर

मैं नन्हा सा बालक मम्मी
थेला है भारी भरकम
इस्कूल तक जाते -जाते
भर जाता है मेरा दम

या तो किताबें कम कर लो
या एक अलग से नौकर रख लो
बहुत वजन है मम्मी इसमे
चाहो तो तुम परख लो

भर आया दिल ममता का
सुनकर बोल दुलारे के
ना बेटा ना, नही रोते हैं
हैं नियम पड़ाई के न्यारे से

पड़ते -पड़ते जब लाला तू
ऊंची कक्षा मैं जाएगा
बेग -बाग़ कुछ न रखेगा
बस एक कापी ले जाएगा

बात सुनी जो मम्मी की
मोनू बड़ा हर्षाया
पलटा जाने को इस्कूल
हंसकर बेग उठाया
शिवराज गूजर

Sunday, September 21, 2008

विडम्बना

चांदपोल चलोगे,
इस शब्द ने जैसे कालू के कानो मैं सहद घोल दिया, वह अभी घर से रिक्शा लेकर बड़ी चोपड पहुँचा ही था, ऐसा कभी - कभार ही होता थाकि पहुँचते ही सवारी मिल जाए, कई बार तो घंटों इन्तेजार करना पड़ जाता था,
हाँ क्यों नही, बेठो, वो चहकते हुए बोला
कितना लोगे
पाँच रुपये
चांदपोल के पाँच रुपये
ज्यादा नही मांग रहा हूँ बाबूजी, बोहनी का वक्त है इसलिए पाँच ही मांग रहा हूँ, वरना तो छः रुपये से कम नही लेता,
रहने दे, सिखा मत, चार रूपये लेना है तो बोल, वरना अभी बस आने ही वाली है,
बस का नाम सुनते ही कालू कुछ दीला पड़ गया, फिर बोहनी करनी थी सो वह चार रुपये मैं सवारी को ले जाने के लिए तैयार हो गया,
सवारी के बैठते ही कालू ने चला दिए पेडल पर पैर ,
चांदपोल पहुंचकर सवारी जब उसे पाँच रुपये का नोट देने लगी तो उसने खुले नही होने की समस्या बताई
सवारी ने बुरा सा मुह बनाया, खुले नही है, मैं सब समझता हूँ, लेकिन मैं भी कम नही हूँ,
कहते हुए सवारी पास ही पान वाले कि दुकान पर चली गयी,
पान वाले ने कुछ लिए बगेर खुले देने से मन कर दिया, इस पर सवारी ने कहा, मैं कुछ खाता तो हूँ नही एक रुपये कुछ भी दे दे यार, वो रिक्शे वाले को किराया देना है,
पान वाले ने उसे एक गुटखा देते हुए खुले रुपये पकड़ा दिए,
सवारी ने गुटखा फाड़ कर मसाला मुह मैं डाला कालू को चार रुपये पकडाये और चल दी अपनी राह
कालू को ख़ुद पर ही हँसी आ गयी, एक रूपया जो उसका जायज हक़ थासवारी उसे देने के बजाय उससे एक ग़लत आदत की शुरुआत कर गयी,
उसने आसमान की और देखाऔर चला दिए पेडल पर पैर
शिवराज गूजर


Friday, September 19, 2008

व्यंगिका

जातिवाद मिटाने का
अभी-अभी वादा करके
सभा से लोटे नेताजी
कार्यकर्ताओं से बोले
पता करो, उस एरिये मैं
किस जाती का बोलबाला है
उसी हिसाब से रणनीति बनायें
चुनाव का वक्त आने वाला है
शिवराज गूजर

Thursday, September 18, 2008

नेता

वोट देकर हाथ अभी डीला भी नही पड़ा है
झोली फैलाये वो फिर मेरे दर पर खड़ा है

जाति के नाम मजहब के नाम दे दे बाबा
अदद वोट की रट पकडे मेरे पीछे पड़ा है

पिछली बार माँगा था जिसकी बुराई करके
उसी दल का पट्टा अब गले मैं बांधे खड़ा है

पिछले वादों का तो हिसाब अभी किया नही
नए वादों का और वो पुलंदा लिए खड़ा है

सड़क, नल, बिजली, नौकरी जो चाहे मांगले
फकीर दर पर देख खुदा बन कर खड़ा है

Sunday, September 14, 2008

हमने तो पहले ही चेता दिया था

बचपन मैं सुना करते थे किडाकू किसी को भी लूटने से पहले इश्तेहार चिपका दिया करते थे, जिसमें लूट का दिन, किसके यहाँ लूट करेंगे और कब करेंगे यह सब लिखा रहता था, तय दिन को पूरी सुरक्षा व्यस्था को धता बताते हुए डाकू वारदात को अंजाम दे जाते थे और पुलिस हाथ मलती रह जाती थी, ऐसी कई फिल्में भी बनी थी जिनमें ये सब दिखाया गया था,
तब ये सब सुनते थे, आज देख रहे हैं, बदला है तो बस ये कि अब डाकू कि जगह आतंकवादी ने ले ली है और इश्तेहार की जगह मेल ने, उनके हलकारे कि जगह मीडिया ने ले ली है, जो उनके मेल को लेकर डिन्डोरा पीटता रहता है, जैसे ही आतंकवादी कहीं कोई वारदात करते हैं, सुरक्षा एजेंसियों का वही सदा गला बयान आ जाता है हमने तो पहले ही चेता दिया था, लगता है चेताने के आलावा इनका कोई काम ही नही रह गया है,

Sunday, September 7, 2008

जमाना

बहुत दिलफरेब यह जमाना है बाबू
अंदर कुछ, बाहर कुछ फसाना है बाबू

भाई-बहन जैसा पाक रिश्ता भी आजकल
अवैध सम्बन्ध छुपाने का बहाना है बाबू

घर-बाहर घूरती है जिस्म को भूखी आँखें
मुस्किल ऐसे मैं अस्मत बचाना है बाबू

खाओ रहम किसी पे वाही रेत देता है गला
इनायत अब आफत गले लगाना है बाबू

सेवा नही रह गयी देश की अब नेतागीरी
ये व्यापार है, जिससे घर सजाना है बाबू

घर मैं हो बेटा, उस पर हो नौकरीपेशा
बेटा नहीं, वह कुबेर का खजाना है बाबू
शिवराज गूजर

Monday, August 25, 2008

दूसरा एपिसोड

यह एपिसोड २० अगस्त को प्रसारित होना था, लेकिन देल्ही से सीधा प्रसारण होने के कारण इसे रोक दिया गया, अब यह २७ अगस्त को दूरदर्शन पर आएगा,इस बार शूटिंग शेडूल काफी बदला, पहले जहोता का प्रोग्राम बना लेकिन बरसात नही रुकने के कारण कैन्सल करना पड़ा, बाद मैं जयपुर ही शूट करने का प्रोग्राम बना, लोकेशन एन वक्त पर दूंदाना मुस्किल था, सो निर्माता दुर्गालालजी के घर पर ही शूटिंग करनी पड़ी, जगह थोडी कम रहने से परेशानी जरूर हुयी , लेकिन कुल मिलकर अच्छा अनुभव रहा, बरसात के कारण कैमरा ११ बजे रोल हुआ, पैक औप करते ९ बज गए, हमने सुबह का खाना भी इसके बाद ही खाया, कैमरा मेन योगेश शर्मा का बढ़िया सहयोग रहा, इस एपिसोड मैं मुख्य भूमिकाएं दिलीप भट्ट , कविता भट्ट, रणवीर सिंह राहीऔर हेमंत ने निभाई हैं,पहले यह एपिसोड फ्लैश बेक मैं था, बाद मैं इसे वर्तमान मैं ही शूट किया गया, अब आप देखें और बताएं कैसा रहा हमारा प्रयास, अपने सुझाव भी आप भेज सकते हैं,
शिवराज गूजर

Wednesday, August 20, 2008

दुनियादारी

ना थारी छे, ना म्हारी छे
या दुनिया भाया दारी छे
गरज पड्यां सूं गुड बण ज्या
काम निकलता ही खारी छे

अंटी मैं पीसा हो तो
जग बण जावे भाएलो
लक्ष्मीजी जद घर छोड़े
कुण नाती, कुणकी यारी छे

पूत कमाऊ हो घर मैं तो
सबने लगे प्यारो सो
बेरुजगार घूमतो बेटो
लागे सबने बेरी छे

शिवराज गूजर

Monday, August 18, 2008

पहला प्रयास

मैंने एक शुरुआत की है, एक धारावाहिक बनाकर, जिसका नाम है बच के रहना रे, इसका दूरदर्शन केन्द्र जयपुर पर १३ अगस्त से (५;२५ से ५;४० बजे) प्रसारण शुरू हुआ है, आप लोग इसे जरूर देखें और बताएं कि मेरी कोशिश कैसी है,बच के रहना रे कहानी है उन शातिर ठगों की है जो लोगों के भोलेपन का फायदा उठाकर उन्हें चूना लगा जाते हैं, उनके पास न कोई जादू की छड़ी है और न कोई सम्मोहन, वे बस आदमी के लालच को हवा देते हैं और बना जाते हैं बेवकूफ,हमारा यह प्रयास अगर २५प्रतिशत लोगों के लालच पर भी ठंडे छींटे दे सकें तो हम अपना प्रयास सफल मानेंगे,

शिवराज गूजर

Monday, July 28, 2008

लघुकहानी 3

सीट दो की है तो क्या हुआ, थोड़ा सा खिसक कर किसी को बेठा लेंगे तो क्या चला जाएगा ? इंसानियत भी कोई चीज होती है ,
बस मैं मेरी बगल मैं खड़े सज्जन सीटों पैर बेठे लोगों को कोसते हुए बडबडा रहे थे,
अगले स्टोपेज पर एक सवारी उतारी तो उन महाशय को भी सीट मिल गयी, वह भी मेरी तरह ही दुबले पतले से थे, सीट मैं थोडी जगह दिखाई दे रही थी, इससे मुझे भी थोडी उम्मीद जगी,
मैंने उनसे कहा भाईसाहब, थोड़ा खिसक जाओ तो मैं भी अटक जाऊं,
इतना सुनते ही वे भड़क गए,
बोले, सेट दो की है और हम दो ही बैठे हैं, कहाँ जगह दिख रही है तुम्हें ? अपनी सहूलियत देखते हैं सब, दूसरे की परेशानी नही समझाते,
अब मुझे समझ मैं आ गया था कि दो की सीट पर दो ही क्यों बेठे हैं,
शिवराज गूजर

Wednesday, July 16, 2008

लघुकहानी 2

उसकी बात और है

भूरी आंखों वाली औरतें बड़ीचालू होती हैं , एक सज्जन अपनी सगाई का एल्बम मित्र को दिखाते हुए औरतों की फितरत के बारे में बता रहेथे,

उसकी मंगेतर की फोटो देख मित्र ने कहा, भाई संभलकर रहना, जिससे तेरी शादी होने जा रही है वो भी भूरी आंखों वाली ही है,

उसकी बात और है यार , पहले वाले सज्जन झेंपते हुए बोले,

शिवराज गूजर

Thursday, June 5, 2008

लघुकहानी 1

नजरिया

देखो तो कैसे ठूंस -ठूंस कर भर रखी है सवारियां, कोई मरे तो मरे इनका क्या ? इन्हें तो बस सवारियों से मतलब,

आती जाती बसों की स्थिति पर बगल में खड़े शर्माजी कंडक्टरों और बस मालिकों को कोस रहे थे, इसी दौरान उनकी बस आ गईउसकी हालत औरों से ज्यादा ख़राब थी , शर्माजी बस की और लपके ,

मैंने कहा, शर्माजी बहुत भीड़ है, पीछे वाली मैं चले जाना ,

पीछे वाली कोनसी खाली आएगी, उसका भी यही हाल होगा , ऐसे इंतजार करता रहा तो जा लिया दफ्तर, बात पूरी होने तक शर्माजी बस पर लटक चुके थे एक पैर पर,

Tuesday, June 3, 2008

श्रीगणेश


ॐ गुरूजी चाँद सूरज, जिह्वा ज्वाला सरस्वती, हिरदे बसो हमेश, भूल्या अक्षर कंठा कराओ तो गौरी पुत्र गणेश, लगी कूंची खुल्या कपाट, जा देख्या ब्रह्माण्ड का घाट, नो नाडी सुरसत बहे, गुरु शब्द लिव लागी रहे, हिरदे कूंची का जाप सही तो महादेवजी ने कही,

कुछ भी कराने से पहले गणेशजी का और कुछ भी लिखने से पहले माँ सरस्वती का स्मरण जरूरी है. मैंने भी एक छोटी सी स्तुति से दोनों का ध्यान किया है.


शिवराज गूजर

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