Thursday, February 3, 2011

तुम क्यों हार गई कविता...

जिंदगी से अभी तुम्हारी जंग शुरू भी नहीं हुई थी। अभी तो तुम अपने मां-बाप के कंधों पर खेल रही थी। अच्छी पढ़ाई कर रही थी। आने वाले दिनों में तुम एक ऐसे सफर पर जाने वाली थी जहां तुम्हें लोगों की जिंदगी बचानी थी। तुम्हारे पेशे में तो लोगों को बहादुर बनाया जाता है, ताकि वे मरते हुए लोगों को बचा सकें। उन्हें आशावादी बनाया जाता है ताकि वे मरते हुए आदमी के मन में भी जिंदगी के प्रति ललक पैदा कर सकें। फिर आधे सफर तुम कायर कैसे हो गई। एक चुन्नी का फंदा क्यों तुम्हें मुक्ति दाता लगा। अगर कहीं कोई टीस थी मन में तो तुम लड़ी क्यों नहीं। अपने भीतर की पूरी ताकत बटोरकर पछाड़ देना था उसे। बताओ न तुम लड़ी क्यों नहीं। तुम क्यों हार गई कविता...।
(नर्सिंग छात्रा के आत्महत्या करने की खबर पढ़ी तो मन में यही सवाल उभरा)

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