कई दिनों से कुछ नहीं लिख पाया इसलिए अपनी एक पुराणी लघुकथा पोस्ट कर रहा हूँ. कई साथी इसे पढ़ चुके होंगे, लेकिन यह उन्हें भी नया सा अनुभव देगी, क्योंकि यह रोज मर्रा की जिंदगी से जुडी हुयी है.
गोद मैं बच्चा लिए व हाथ मैं झोला लटकाए एक ग्रामीण महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एक दम से वह निराश हो गयी, फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर अटकने कीजगह मिल जाए, वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी , उस पर बस एक युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट पर,
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी,
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच गैलरी मैं ही बेठ गयी, इसके बाद उस खालीसीट को देख कर कईं आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,तभी एक युवती बस मैं चडी , अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, कोई आएगा, नीचे गया होगा, टिकेट या फिर कूछ लेने , और वह भी खड़ी हो गयी महिला के पास,
बेठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा,
इस आवाज पर युवती ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था,उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,
जी नही, युवक उसी मुस्कान के साथ बोला, इस पर युवती मुडी और नीचे बेठी उस बच्चे वाली महिला को वहां बेठा दिया,अब युवक का चेहरा देखने लायक था, वह युवती को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,
शिवराज गूजर
9 comments:
पोस्ट अच्छी है... लेकिन बिलकुल यही पोस्ट अक्षरश: तीन महीने पहले प्रकाशित कर चुके हो...
जी ..बिलकुल ऐसा ही होता है जिंदगी में..सब लोगों ने अपने अपने नियम बना रखे है जो ..कभी भी किसी को देख कर बदल जाते है...
बेहद रोचक और प्रेरणादायक पोस्ट।
बधाई।
shivraj ji
namaskar ,
post bahut behtar ban padhi hai .. aur bahut rochak bhi hai ..
aapko badhai ..
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
bahut shaandar post bhai , shivraaj ji zindagi me yahi sab kuch to hota hai.. aapne bahut accha likha hai ..
badhai
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
नहले पे देहला वाली पोस्ट...बहुत कुछ कह जाती है आपकी ये लघु कथा...बहुत प्रेरक प्रसंग...
नीरज
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आप मेरे ब्लॉग पर आए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
बोहोत खूब ! छोटी-सी और इतनी सफाई से गहन बात कह गयी ..
very good this is a real life event
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