मन हरसावे मिनखां रो
जीव-जनावर राजी होग्या
रूप निखरग्यो रूंखां रो
करषां का खिलग्या मुखड़ा
देख मुळकता खेतां ने
बैठ मेड़ पै गावे हाळीड़ा
छोड़ माळ में बेलां ने
हरख्यो-हरख्यो दीखे कांकड़
ओढ्यां चादर हरियाळी
ढांढा छोड़ खेलरया ग्वाळ्या
छोड़ आपणी फरवाळी
शिवराज गूजर
9 comments:
शिवराज जी,
घणोज फ़ुटरो कवित रच्यो,हीवडा नें अंतर सूं भींनो
कर दियो।
मंदरो मंदरो री जगै,मदरो मदरो नी वैला?
वै सके आपरे कांनी मंदरो कैवीजतो वै।
आपरो घणूं मान सूज्ञजी। मन की भावना छी ज्यो शब्दां मैं डाळ दी। आपने पसंद आई म्हारे लिए या बड़ी बात छे।
are wah aaj aapki nayi pratibha se parichay hua, aap rajasthani kavitayen to kafi achi likh lete hain
rajsthani bhasha me kavita likhan saru badhai...aap ri kalam savai re ve...
thanks neelimaji. rajasthani main lekahan abhi ankurit hone ki stage main hai. kalam ki speed bad gayee hai tareef pakar.
majo aaigyo harishji. aap ki badhai mhare liye energy tonik hai. tonik mil gaya. speed badegi.
घणी खम्मा ,
मानिता शिव राज जी !
आज आपरो ब्लॉग देखन रो सौभाग्य मिल्यो आच्छो लाग्यो .मायड भासा सारु आप री खेचल सरवन जोग है सा ,
बधाई !
घणी खम्मा ,
मानिता शिव राज जी !
आप री ओलिया साची है जे बिरखा नी हुए तो मिनखा सागे जिनाव्रारो भी चाबो खूको ज़रूरी हुए है , फूटरा चित राम सामी राख्या है ,
साधुवाद
आपरो घणूं-घणूं मान सुनीलजी। म्हारा ब्लॉग पर आप आया मन राजी होग्यो। खम्मा घणी।
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