Sunday, January 16, 2011

सोचता हूँ भानूमति की तस्वीर ले ही आऊँ

'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा' भानुमति का यह टोटका काफी पुराना है पर आज भी अचूक है। लोग धड़ल्ले से इसका उपयोग कर रहे हैं। उसने इसका पेटेंट करवा लिया होता तो आज उसकी पीडियों के वारे न्यारे होते. खैर गलती हो गयी उसका क्या रोना. आज रीमिक्स का दौर है. भाइयों ने इसका भी नया संस्करण निकल दिया. लेटेस्ट है जुगाड़. यह वर्जन जनता क्लास के लिए है. बालकनी वालों के लिए इसे हिंदी में 'गठबंधन' के नाम से और अंग्रेजी में 'एलायंस' के नाम से रिलीज किया गया है. जुगाड़ का सबसे अच्छा उदाहरण है किसान बुग्गा. एक कंपनी का डीजल इंजन लिया (वैसे बेचारे को डीजल कम, केरोसिन ही ज्यादा पीना पड़ता है) , ऊँट गाड़ी की बॉडी में जीप के पहिये लगाये और बन गया बुग्गा. ४०-५० हजार रुपये के इस आइटम से सवारियां भी ढो लो और सामान भी. क्षमता का कोई लेना -देना नहीं. मड गार्ड तक पर सवारियां बैठा लो, नो प्रॉब्लम. जीप और ट्रैक्टर वाले जलें तो जलें. जहाँ तक में समझाता हूँ, राजग के उदय का प्रेरणा स्त्रोत भी यही रहा होगा. मेरे दिमाग में एक फिल्म चल रही है. दो बार कुर्सी से बिछुड़ने के गम में अटल बिहारी वाजपेयी हाथ में माला लेकर फेरते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी के मोडल को आशा भरी नजरों से एक टक टेक जा रहे हैं. जैसे कह रहे हों, ' प्रिय मुझसे क्या खता हो गई, जो तुम दो बार मेरे पास आकर भी मेरी नहीं हो सकी. तभी एक अजीब से कानफोडू शोर ने उनका ध्यान भंग कर दिया. किसी साधनारत तपस्वी की तरह उन्होंने गुस्से में पलट कर देखा. क्या देखते हैं कि सामने वाले मकान के बाहर एक विचित्र वाहन खडा है. यह आवाज वाही कर रहा था. उससे सामान उतारा जा रहा था. शायद कोई नया किरायेदार आया था. ऐसा वाहन उन्होंने कभी नहीं देखा था. उसके बारे में जानने की उत्सुकता लिए वे तेजी से घर के बाहर आये. उन्होंने उसे घूमकर चारों ओर से देखा. जब कुछ समझ में नहीं आया तो ड्राइवर से पुछा, 'यह क्या है,'
ड्राईवर बोला, ' जुगाड़'
जुगाड़ बोले तो?
ड्राईवर ने उनके इस अज्ञानता भरे प्रश्न पर उन्हें ऊपर से नीचे तक ऐसे देखा जैसे कह रहा हो, इतने तेज ज़माने में तुम्हें यह भी पता नहीं कि जुगाड़ क्या है? खैर उसने उदारता दिखाई और जुगाड़ का मतलब समझाया,
'जब आपके पास पर्याप्त साधन नहीं हो तो दूसरों से जो भी वह देने कि स्थिति में हो लेलो, और अपना काम निकल लो. यह टोटका भानुमति का है, जिसे इसको बनाने में काम में लिया गया है.'
फार्मूला समझ में आते ही वाजपेयीजी के माला फेरते हाथ जहाँ के तहां रुक गए. माला ठेली में छूट गई. उनके सोये ज्ञान चक्षुओं ने पलकें उघाड़ दीं. उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी अपनी होती नजर आने लगी. वे तेजी से ड्राईवर की ओर बड़े ओर इससे पहले की वह कुछ समझ पाता किसी सिरफिरे आसिक की तरह उसका माथा चूम लिया, और दौड़ लगा दी घर की तरफ. फ़ोन उठाया और फटाफट भानुमति की तस्वीर का आर्डर दे दिया. दो बार कुर्सी से दूर हो जाने का गम अब उनके चेहरे से कोसों दूर भाग खडा हुआ था. भाजपा के राजग नामक जुगाड़ में परिवर्तित होते ही कमल हो गया. भानुमति का फोर्मुला अपना काम कर गया था. वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बन गए.
इस घटना ने कोंग्रेस में खलबली मचा दी. सबके मुह पर एक ही सवाल आ बैठा था, यह हुआ क्या और कैसे हो गया. मेडम ने राजग की इस सफलता का सूत्र तलाशने के लिए. जासूस छोड़ दिए. जासूसों ने भी तहलका किया और आखिर वह सूत्र पकड़ ही लिया यह 'जुगाड़' मेडम के समझ में नहीं आया तो उन्होंने इसे अंग्रेजी में अनुवाद कर बताने के लिए कहा. ट्रांसलेटर बड़ी मुस्किल से मेडम को इसका अर्थ समझा पाए. मेडम ने फोर्मुले पर काम किया. मौका लगते ही आजमाया और आज सत्ता में हैं. यह अलग बात है कि वह उस उस्ताद की तरह हैं जो ड्राईवर की नहीं खलासी की सीट पर बैठ कर अपने इशारों पर गाड़ी चलवाता है. अब भानूमति की तस्वीर मनमोहनजी के कमरे में भी है और मेडम के कमरे में भी. लालूजी के जिस दिन यह रामायण समझ में आ गई वह ले उडेंगें भानूमति को . बना देंगें उसको भी कहीं की मुख्यमंत्री राबडी देवी की तरह और प्रधानमंत्री की कुर्सी होगी उनकी. शायद वे फोर्मुले के बहुत करीब हैं, तभी तो कहते रहते हैं, ' हम एक दिन पीएम जरूर बनूँगा.' में भी सोच रहा हूँ कि भानूमति कि तस्वीर अपने कमरे में लगा ही लूं. शायद यह फोर्मुला काम कर जाये और में भी किसी पुरस्कार का जुगाड़ कर ही लूं.
शिवराज गूजर

1 comment:

theasianschools said...

Thanks for sharing..
Your article is so good...
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