हर रोज
काम पर जाते वक्त
करता है खुद से
एक वादा
आज लौट आऊंगा
घर जल्दी
कुछ वक्त बिताऊंगा
बच्चों के साथ
बीवी के साथ
कुछ दुख-कुछ सुख
की बातें करूंगा
मां-बाबूजी के साथ
पर
पलटता है जब
हो चुकी होती है रात
सो चुके होते हैं बच्चे
मां-बाबूजी के खर्राटे
बता देते हैं गहरी नींद में हैं
श्रीमतीजी जरूर मुस्कुराती
होती है मुखातिब
पर, आंखों में कुलबुला ही जाती है
शिकायत
स्वचालित मशीन से होंठ
फिर वही दोहरा देते हैं
कल जरूर वक्त पर आऊंगा
और हम....
छोड़ो, कोई नई बात करो
हाथ-मुंह धोलो
मैं खाना लगा देती हूं
कहती हुई वो चली जाती है
रसोई में खाना गर्म करने
शिवराज गूजर
3 comments:
Kya nayi baat karega koyi...ateet ke kayi saare chitr aankhon ke aage se guzar gaye!
"Bikhare Sitare" pe aapki tippanee ka nirdesh kiya hai...behad hausala afzayi kee aapne..zaroor dekhen!
bahut hi khubsurat dristikon....
umdaah rachna...
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
mann ka sundar chitran....very interesting rachna...thanks archana
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