Sunday, May 22, 2011

यह लालच मरता क्यों नहीं?

छठी में एक कहानी पढ़ी थी। लालची कुत्ते की 'ग्रीडी डॉग'। पढ़ी अंग्रेजी में थी पर याद हिंदी में है। लालच के बहकावे में आकर कुत्ते ने अपनी परछाई से ही दूसरी रोटी पाने की कोशिश की। इस चक्कर में उसने अपने पास वाली रोटी भी गंवा दी थी। तब तब शायद लालच छोटा रहा होगा इसलिए कुत्ते के माध्यम से इसे समझाया गया था। अब स्थितियां उलट है। कुत्ते समझदार हो गए हैं, इंसान लालची। कहानी वही है, बस पात्र बदल गए हैं।
अब कहानी कुछ यूं होती है-एक महिला होती है। नाम इसलिए नहीं दिया है कि किसी से मेल खा गया तो वो लडऩे मेरे घर तक आ जाएंगी। वह महिला एक दिन बस स्टैंड पर खड़ी होती है। उनके पास एक अन्य महिला और उसकी कथित बेटी आती हैं। दोनों उसे बताती हैं कि उन्हें बस में एक सोने के मोतियों की माला मिली है। कुछ बदमाशों ने माला देख ली, इसलिए मेरे पीछे पड़े हैं। मैं इसे बेचती तो नहीं लेकिन क्या करूं, कोई चीज जान से तो बढ़कर नहीं होती ना! मैं किसी तरह बदमाशों से नजर बचाकर आई हूं! मैं इसे बेचना चाहती हूं। आप ले लीजिए। महिलाजी की लालच से जीभ लपलपा गई।  खट से अपने गहने उतार कर दे दिए। कम बताने पर खरीदारी के लिए लाए बीस हजार रुपए भी थमा दिए। बड़ी राजी (खुश) होते हुए घर पहुंची। घरवाळा भी खुशी से नाचने लगा। अपनी लुगाई की चतुराई पर ऐसा राजी हुआ कि घर वाळों के सामने उसकी ओर तिरछी नजर से भी नहीं देखने वाले ने लपक कर उसका माथा चूम लिया। ये और बात है कि बाद में शरमा के बाहर निकल गया। खुशी के पंखों पर सवार दोनों लोग-लुगाई सुनार के पास पहुंचे। सुनार ने जो बताया सुनकर दोनों के होश उड़ गए। सुनार ने उन्हें सपनों के संसार से उठाकर हकीकत की कठोर जमीन पर पटक दिया था। वो सोने के मोतियों की माला नकली थी। लुगाई की तारीफ कर रही जबान अब काफी कड़वी हो चली थी। लालच दोनों को देखकर मुस्करा रहा था। आज उसने इंसान को भी जीत लिया था। इस विजय ने उसे और ताकतवर बना दिया था। उसे इंसान की कमजोरी पकड़ में आ गई थी। वो समझ गया था कि इंसान जब दूसरे के साथ धोखाधड़ी होती है तो वह बहुत अफसोस करता है। उफनता भी है। उसकी नादानी पर फिकरे कसता है। उन्हीं परिस्थियों के बीच जब खुद पहुंचता है तो सारी समझदारी धरी रह जती है और वह भी लालच से मार खाकर रुदन करता लौटता है।
सवाल उठता है, यह मरता क्यों नहीं है? यह खुद नहीं मरता तो इसे मार क्यों नहीं देते? ऐसा नहीं है कि इंसान ने इससे लडऩे की कोशिश नहीं की। बहुत की, पर इसे बाली का सा (के जैसा) वरदान प्राप्त है। बाली को तो जानते हैं ना! रामायण में जिसका जिक्र है। उसके सामने जो भी मुकाबले के लिए खड़ा होता था उसका आधा बल उसमें आ जाता था। भगवान राम को भी उसे मारने के लिए छिपकर तीर चलाना पड़ा था। बाली का सा वरदानधारी यह लालच आए दिन शिकार कर-कर के पोषित होता आज रावण का सा अमर हो गया है। इसे मारने के लिए किसी राम को ही अवतार लेना पड़ेगा, पर यह कलयुग है। पता नहीं राम आएंगे कि नहीं। कल्कि का इंतजार है।

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