'पिंटू बिलकुल अपने दादा पर गया है। अभी छठा साल भी पार नहीं किया है और कितना बड़ा दिखने लगा है. रंगत में तो अपनी मम्मी पर गया है, गोरा चिट्टा.' कुछ दिनों पहले तक ये घरों में चलने वाली आम बातें थीं, जिनके आधार पर संतान की तुलना अपनी पीढी के आनुवंशिक गुणों से की जाती थी. अब जमाना बदल गया है. ये बातें पुरानी हो चली हैं. अब संतान माँ-बाप पर नहीं, बाजार पर जाती है. उसमें आनुवंशिक नहीं आरोपित गुण आते हैं. टीवी पर इन दिनों एक विज्ञापन आता है, आपने भी देखा होगा. स्क्रीन पर एक महिला अपनी सहेलियों को त्रोफियों से भरी आलमारी दिखाते हुए अपने बच्चे की इंटेलीजेंसी का बखान कर रही होती हैं. तभी उसका लाडला एक और ट्राफी लिए हुए घर में प्रवेश करता है. इस पर वह महिला थोडा इतर कर कहती है,
' लगता है ट्रोफियों के लिए अब तो एक अलग से रूम ही बनवाना पड़ेगा।'
यह सुनकर उसकी सहेलियों में से एक बोलती है,
'लगता है यह लड़का अपने पापा पर गया है।'
तभी दूसरी सहेली उसकी बात काटते हुए कहती है,
' पापा-वापा छोडो, इनके यहाँ डिस्नेट का इंटरनेट कनेक्शन है। '
जी हाँ अब इंटरनेट का जमाना है. अगर आप जिंदगी भर भी डपोर शंख रहे तो घबराइये मत कि आपका बच्चा भी आप पर चला गया तो क्या होगा? अब यह चिंता-विनता छोडो और इंटरनेट से नाता जोडो. हो सकता है आप हेल्थ में कमजोर हों और डर रहे हों कि आपकी संतान भी आप जैसी हुई तो ? अब नो टेंसन. बाजार हाजिर है. हेल्थसन, लोह्बल या फिर और कोई कप्सूल दीजिये, आपका लाडला डब्लू-डब्लू ऍफ़ के पहलवानों को मात करने लगेगा. ज्यादा दे दो तो सूमो से सीधा मुकाबला है. अंदरूनी या दिमागी तौर पर कमजोर है तो कईं विकल्प हैं, बोर्नवीटा, कोम्प्लान वगैरा -वगैरा. फेहरिस्त लम्बी है. बस उम्दा पर टिक लगाइए और बना दीजिये अपनी संतान को ब्रिलियंट. मुझे डार्विन का आनुवंशिकवाद फेल होता नजर आ रहा है. आप छोटे हैं तो क्या हुआ, सारी आनुवंशिक गणित को धता बताते हुए अपने बच्चे को जिराफ कि गर्दन जितना या आदमियों के हिसाब से देखें तो कौन बनेगा करोड़पति के अमिताभ बच्चन जितना लम्बा कर सकते हैं, लॉन्ग लुक से. आप काले हैं तो नो प्रोब्लम. इस फिल्ड में आपके पास ऑप्सन ही ऑप्सन हैं. सनक्रीमें और माउथवाश. गोरापन लाने वाली हल्दी और चन्दन के गुण समाये बहुत सी आयुर्वेदिक क्रीमें, मसलन फेयर एंड लवली, पोंड्स, नेचुरली फेयर, बोरो प्लस, वीको टर्मरिक वगैरा-वगैरा. चुनने में कन्फ्यूज हो रहे हैं? दिमाग काम नहीं कर रहा है. इसका भी सॉल्यूशन है. नवरतन का तेल सर में लगाइए, दिमाग को ठंडा-ठंडा, कूल-कूल कीजिये और बना लीजिये काले पेरेंट्स कि संतान को गोरा. मेरिट में आने वाले बच्चे का अखबार में फोटो देखना. दखी है मा-बाप के साथ. लिखा देखा है कभी-थेंक्यू मम्मी-पापा. धन्यवाद इसलिए नहीं कहा आप मुझे पुरातन पंथी मान बैठेंगे. टोपर का फोटो होता है किसी उत्पाद के साथ और नीचे लिखा होता है थेंक्यू फलां उत्पाद, फलां पासबुक या फिर और कुछ. अब तो वैज्ञानिक भी परखनली में शिशु पैदा करने का दावा करने लगे हैं. गुणों वाला कोई झंझट ही नहीं. बस आप उन्हें नोट करा दीजिये अपनी संतान की आँखों, बालों का रंग, हेल्थ और लम्बाई और पिये अपनी मनपसंद मॉडल संतान. इसलिए भाई मेरे आनुवंशिकता को भूल जा, पापा-वापा छोड़, उतर जा बाजार में और पा ले अपना/अपनी वंश बेल का/की वारिश.
शिवराज गूजर
8 comments:
भैया आजकल के ये बाजारीकरण के एड तो समझ लो बच्चों को ना जाने क्या क्या बनायेंगे
मेरा अपना जहान
बहुत पते की बात, व्यंग्य के द्वारा! बहुत दिनों बाद किसी को साधारण व्यक्ति से जुड़े असली मुद्दों पर आवाज उठाते देख रहा हूँ। जब मैं डाक्टरी के दाखिले की परीक्षा में अव्वल आया था, तो मेरे पास सभी कोचिंग वाले पहुँच गये थे नोटों की गड्डियाँ लेकर। कहते थे कि मेरा इश्तिहार छापेंगे। भई जब मैंने तुमसे कोचिंग ली ही नहीं तो इश्तिहार काहे का? उन सभी को अपनी दुकान समेटकर बाहर कर दिया गया।
बाजारीकरण का विरोध सिर्फ सैद्धांतिक रूप से नहीं, अपितु व्यावहारिक रूप से करें तो ही कुछ आस है।
"मा-बाप के साथ. लिखा देखा है कभी-थेंक्यू मम्मी-पापा. धन्यवाद इसलिए नहीं कहा आप मुझे पुरातन पंथी मान बैठेंगे."
मजेदार जानकारी दी है।
धन्यवाद।
बहुत बढिया व्यंग्य किया है ... आज की परिस्थितियों पर।
Nice write up. Pl.keep it up.
बाजारीकरण के ये एड तो बच्चों को ना जाने क्या क्या बनायेंगे
nice blog.
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