Friday, November 6, 2009

सोचता हूँ

सोचता हूँ
क्यों न तुम्हारा नाम
खुसबू रख दूं,
ताकि तुम्हें पुकार सकूं
बेहिचक
कहीं भी, कभी भी
सबके बीच में.
मैं कहूँगा
खुसबू आ रही है.
सब कहेंगे
हाँ, आ रही है.
मेरा मतलब
तुमसे होगा
और उनका मतलब............

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बेहतरीन रचना है!
बधाई!

वाणी गीत said...

कहीं पे निगाह ...कही पे निशाना ...
बढ़िया है ..!!

shivraj gujar said...

मयंक जी बहुत अच्छा लगा आप मेरे ब्लॉग पर आये. आपके कमेंट्स मेरा होंसला बढाते हैं.

shivraj gujar said...

वाणी गीत बहुत-बहुत शुक्रिया. आप मेरे ब्लॉग पर आये मुझे बहुत अच्छा लगा. आशा है आप मेरा होंसला यूं ही बढाते रहेंगे.

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