बेटे की शादी के बाद
उसमें बड़ा बदलाव आया
दहेज के विरोध में
उसने बड़ा आंदोलन चलाया
सोई हुई उसकी आत्मा
अचानक! जाग गई थी
बेटी जो उसकी
शादी के लायक हो गई थी।
अभी तो बिल्कुल हूं नीलिमा जी। जब शादी हुई तब तो शायद नहीं था। घरवाले कहते हैं, कुंवर कलेवा (दूल्हे को खाना खिलाना)के वक्त में रेडिया के लिए रूठ गया था। बड़ी मुश्किल से दस रुपए लेकर खाना खाया था। शादी के वक्त मेरी उम्र सही तो मुझे ध्यान नहीं लेकिन मैं उस समय 4 से 5 साल के बीच का रहा होउंगा।
...तो कहीं निकट भविष्य में घर में किसी कन्या के विवाह की जिम्मेदारी ही तो इस रचना का आधार नहीं? बहरहाल मुद्दा हास्य का नहीं। पिछले दिनों ब्लॉग पर शादी और लिव इन रिलेशनशिप का काफी तुलनात्मक विवेचन हुआ। मैं शादी जैसे पवित्र रिश्ते को बहुत अहमियत देती हंू पर जब तक यह दहेज जैसी कुरीतियों से लिपटी रहेगी, इसतरह की बात उठेगी ही। विचारोत्तेजक रचना के लिए बधाई
आपको बधाई हो शिवराज भाई..!! सिर्फ यह रचना ही नहीं आपका पूरा ब्लॉग ही मुझे बहुत पसंद आया. वैसे अभी पूरा पढ़ नहीं पाया पर जितना पढ़ा उतना ही काफी था थकान मिटाने के लिए और रि-फ्रेश होने के लिए. आपका सेंस ऑफ ह्यूमर भी तारीफ़ के काबिल है. Please keep it up bhai ...!!
8 comments:
बहुत सुन्दर रचना!
बधाई!
बेटे की शादी के बाद
उसमें बड़ा बदलाव आया
दहेज के विरोध में
उसने बड़ा आंदोलन चलाया.nice
दो बार लिख गई रचना..है सशक्त!
सोई हुई उसकी आत्मा
अचानक! जाग गई थी
बेटी जो उसकी
शादी के लायक हो गई थी।
Bahut sundar rachna hai...tikhe teer jaise...aise logon ke atma kabhi nahi jaagte...bas apne fayde ke liye karwatein badalte rehte hain.
बहुत सही, बड़ा अच्छा पकड़ा है, पर आप तो दहेज विरोधी ही हैं न :-)
अभी तो बिल्कुल हूं नीलिमा जी। जब शादी हुई तब तो शायद नहीं था। घरवाले कहते हैं, कुंवर कलेवा (दूल्हे को खाना खिलाना)के वक्त में रेडिया के लिए रूठ गया था। बड़ी मुश्किल से दस रुपए लेकर खाना खाया था। शादी के वक्त मेरी उम्र सही तो मुझे ध्यान नहीं लेकिन मैं उस समय 4 से 5 साल के बीच का रहा होउंगा।
...तो कहीं निकट भविष्य में घर में किसी कन्या के विवाह की जिम्मेदारी ही तो इस रचना का आधार नहीं? बहरहाल मुद्दा हास्य का नहीं। पिछले दिनों ब्लॉग पर शादी और लिव इन रिलेशनशिप का काफी तुलनात्मक विवेचन हुआ। मैं शादी जैसे पवित्र रिश्ते को बहुत अहमियत देती हंू पर जब तक यह दहेज जैसी कुरीतियों से लिपटी रहेगी, इसतरह की बात उठेगी ही। विचारोत्तेजक रचना के लिए बधाई
आपको बधाई हो शिवराज भाई..!!
सिर्फ यह रचना ही नहीं आपका पूरा ब्लॉग ही मुझे बहुत पसंद आया. वैसे अभी पूरा पढ़ नहीं पाया पर जितना पढ़ा उतना ही काफी था थकान मिटाने के लिए और रि-फ्रेश होने के लिए. आपका सेंस ऑफ ह्यूमर भी तारीफ़ के काबिल है. Please keep it up bhai ...!!
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