Friday, April 16, 2010

कुछ बहुएं भी ना!

गंदे कपड़े
जूठे बरतन
बूढ़ी सास के आगे पटक
सहेली के साथ
फिल्म देखने निकली
मिसेज शर्मा
परदे पर
बहू के सास पर
अत्याचार देख
फूट-फूट कर रोई
सहेली के कंधे पर
सिर रखकर
सिसकते हुए बोली-
कुछ बहुएं भी ना!


-शिवराज गूजर

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही वेहतरीन क्षणिका!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर रचना ! शीर्षक एकदम सही है "कुछ बहुएं भी ना" । वैसे आजकल हमारे देश की शहरों में ज्यादातर बहुएं ऐसी ही है ।

वाणी गीत said...

हाँ ...होती है कुछ ऐसी बहुएं भी ...!!

Udan Tashtari said...

हा हा! वाह रे बहुरिया!!

Anonymous said...

bahut hi behtareen rachna..
yun hi likhte rahein....
regards..
http://i555.blogspot.com/

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