Saturday, July 31, 2010

सही-गलत

1
हां ! भई
अब क्यों आएगा तूं
गांव।
कौन है अब तेरा यहां।
तेरी लुगाई
और तेरे बच्चे
ले गया तू शहर
यह झिड़की सुननी पड़ती है
हर उस बेटे को
जो आ गया है शहर
रोजी-रोटी कमाने।
आया था जब वो शहर
अकेला था
सो भाग जाता था गांव
सप्ताह-महीन में।
अब यह नहीं हो पाता
इतनी जल्दी
क्योंकि-
अब बढ़ गई है जिम्मेदारियां
अनजान शहर में
किराए के मकान में
बच्चों को किसके भरोसे छोड़
हो आए हर सप्ताह गांव
और फिर गांव जाना भी तो
अब हो गया है महंगा
बच्चों की फीस और घर-खर्च
ही निगल जाते हैं महीने का वेतन
ऐसे में गांव पैसा भिजवाना
भी नहीं हो पाता मुमकिन
कई-कई महीने
2
उनका सोचना भी
नहीं है गलत
पेट भरने भर के लिए
शहर में परेशान होना
कहां की समझदारी है
घर पर खेती है
इतना तो
यहीं कमा लेगा
उतनी मेहनत करके
और फिर
पेट ही भरना है तो
वो तो जानवर भी भर लेते हैं।

शिवराज गूजर

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया रचना है!
--
मित्रता-दिवस की शुभकामनाएँ!

shivraj gujar said...

honsala badane ke liye thanks shastriji. aapko bhi mitrta divas ki shubhkamnayen.

सुनील गज्जाणी said...

शिव राज जी ,
घणी खम्मा !
आप कि दोनों रचनाये बोध करने वाली है सुंदर अभिव्यक्ति ,
साधुवाद
सादर

shivraj gujar said...

ghani khamma sunilji. aise hi honsala badate rahen. kalam main dhaar aati jayegi.

सत्यनारायण पटेल, कहानीकार, उपन्यासकार, इन्दौर said...

Shivaraj ji badhiya kam kar rahe ho
satyanarayan patel
bijooka film club indore
ssttu2007@gmail.com

Unknown said...

So nice setry

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