बहुत दिलफरेब यह जमाना है बाबू
अंदर कुछ, बाहर कुछ फसाना है बाबू
भाई-बहन जैसा पाक रिश्ता भी आजकल
अवैध सम्बन्ध छुपाने का बहाना है बाबू
घर-बाहर घूरती है जिस्म को भूखी आँखें
मुस्किल ऐसे मैं अस्मत बचाना है बाबू
खाओ रहम किसी पे वाही रेत देता है गला
इनायत अब आफत गले लगाना है बाबू
सेवा नही रह गयी देश की अब नेतागीरी
ये व्यापार है, जिससे घर सजाना है बाबू
घर मैं हो बेटा, उस पर हो नौकरीपेशा
बेटा नहीं, वह कुबेर का खजाना है बाबू
शिवराज गूजर
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सेवा नही रह गयी देश की अब नेतागीरी
ये व्यापार है, जिससे घर सजाना है बाबू
--बहुत सही!!
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