Monday, November 17, 2008

डर

रामू नया -नया जयपुर आया था गाँव से , पुलिया के नीचे आदमियों की भीड़ ज्यादा दिखी तो वहीं बगल मैं लगा लिया मूंगफली का ठेला, अभी बोहनी भी नही हुयी थी किएक आदमी आया और ठेले मैं से मुठी भर कर मूंगफली उठाई और चलता बना, रामू ने उसे आवाज देकर पैसे के लिए कहा तो भद्दी सी गाली देते हुए रामू को मरने के लिए झपटा, रामू भी कोई कम नही था, अभी-अभी बीसवें साल मैं कदम रखा ही था, सरीर भी माता-पिता के लाड और झुमरी गायके दूध कि बदोलत आसपास के गाँव मैं किसी का नही था ऐसा पाया था, ऐसे मैं वो कहाँ दबने वाला था, एक ही दावमैं उस आदमी को जमीन दिखा दी, और फ़िर जो लगा दे दनादन जो उसे तबला बना दिया, तभी भीड़ मैं से कोई चिल्लाया
अरे ये तो बिल्लू दादा है , आब ये ठेले वाला तो गया कम से, दादा की इजाजत के बगेर तो इस इलाके मैं पत्ता भी नही हिलता,
रामू के हाथ जहाँ के तहां रुक गए, सीन बदल गया था, अब हाथ दादा के चल रहे थे और रामू गिडगिडा रहा था, माफ़ी मांग रहा था,
शिवराज गूजर

4 comments:

संगीता पुरी said...

छोटी सी कहानी पढायी , पर बहुत अच्‍छे भाव के कारण अच्‍छी लगी। धन्‍यवाद।

दिनेशराय द्विवेदी said...

डर गया रामू। वरना इलाके का दादा वही होता।

विधुल्लता said...

post let dekhi ,samay kam hi rahtaa hai phir bhi ,is laghu kathaa ki chitr sheli pasand aai,,kuch logon ko ham nahi jaante lakin woapni lekhni se apne jane jaate hai ,aap kaa lekhan aisa hai ,shukriyaa,blog jagat main itni aatmiytaa hetu,

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

छोटी सी कहानी लेकिन बेहद सुंदर। वास्तविकता के कितने निकट

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