Thursday, January 1, 2009

लोकल भाषा भी जानें

शहर मैं आने के बाद गाँव वाले भी शहर के रंग मैं रंग जाते हैं, यहाँ तक की उनका बोलना -चलना और रहन -सहन का डंग भी पूरी तरह बदल जाता है, ऐसे मैं उनके सहर वाले घर शिवराज पैदा होने वाला बच्चाभी पूरी तरह शहरी ही होता है, जब वे गाँव जाते हैं तो अजीब -अजीब सवाल करते हैं, मेरे एक परिचित के बच्चे ने तो बावडी को देख कर बड़ा विचित्र सा सवाल किया, अंकल ये अंडरग्राउंड मकान किसका है, यह सुनकर मुझे हँसी आ गयी, मुझ पर ध्यान दिए बगेर वो बोला बरसात के दिनों मैं तो इसमें पानी भर जाता होगा, फिर ये लोग कहाँ जाते होंगे, जब मैंने उसे बताया की यह बनाई ही पानी के लिए ही गयी है, इसमें कोई नही रहता, इसे बावडी कहते हैं, वो बड़ा खुश हुआ और कहने लगा मैं अपने दोस्तों को बताऊँगा की मैंने सच की बावडी देखि है,
एक और अजीब किस्सा सुनिए, मैं बस से अजमेर जा रहा था, चालक के केबिन के पीछे वाली सीट पर जगह थी सो मैं वहीं
बेठ गया, रस्ते मैं दो लड़कियों को लघुशंका की शिकायत हुयी तो वे चालक की केबिन के पास आकर खड़ी हो गयीं. उन्होंने चालक से कहा की अंकल हमें टॉयलेट करनी है. चालक बेचारा ज्यादा पड़ा लिखा नही था, उसे कुछ समझ नही आया. सो वो बस मुस्करा कर रह गया, थोडी देर बाद उन्होंने फ़िर कहा अंकल बाथरूम करना है, चालक फ़िर मुस्करा कर रह गया, और बस अपनी रफ़्तार से रास्ता नापती रही, उनकी परेशानी बाद रही थी, यह देख मैंने चालक से कहा, की भाई साहब आपको सुने नही देता क्या ये बच्चियां कितनी देर से लघुशंका के लिए कह रही हैं, उसने साथ के साथ ब्रेक लगा दिए, फ़िर मुदा और हाथ जोड़ते हुए बोला, देविओं मैं कोने जानू अंग्रेजी, मैं समझया कोने की तुम काई खे रही छो, पिशाब के लिए खे देती तो इतरी परेशां तो कोणी होती, वो लड़किया शर्मिंदा सी होती हुयी नीचे उतर गयी लघुशंका के लिए,



1 comment:

"अर्श" said...

लोकल के अलावा सिर्फ़ हिन्दी भाषा जानना ही काफी है भारत में सबके के लिए ....
बहोत बढ़िया लेखा पढ़ने को मिला बहोत खूब....


अर्श

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