अजी सुनते हो
घर में घुसा ही था कि श्रीमती जी बोलीं
मुन्ना चलने लग गया है.
हाँ, फिर ?
फिर क्या ?
दाखिला नहीं कराना है स्कूल में
मैं चौंका,
यह नन्ही जान
खुली नहीं अभी ढंग से जबान
क्या पढेगा ?
अजी अभी पढाना किसको है.
यह तो रिहर्सल है, स्कूल जाने की
और फिर यहाँ यह रोता भी है
वहाँ मेडमें होंगी,
वो खिलाएँगी इसे
टोफियाँ देंगी.
हमें भी कुछ देर सुकून तो मिलेगा
मगर भागवान...
बात पूरी होने से पहले बोल पड़ी वो
मगर -वगर कुछ नहीं
मैं फार्म ले आई हूँ प्रवेश का
कल इंटरव्यू है अपना
तुम्हें भी चलना है.
प्रवेश बच्चे का, इंटरव्यू अपना ?
जी हाँ. यह प्रीव्यू है पेरेंट्स का
बच्चा तो ढंग से बोलता भी नहीं अभी
क्या पूछेंगे इससे
तो हमसे क्या पूछेंगे ?
यही कि, क्या हम समय दे पाएंगे
इसे घर पर
रोज दो चार घंटे पढाने का.
8 comments:
बहुत खूब ! पढ़ना तो माँ बाप ने ही है कौनसे स्कूल वाले पढायेंगे ? उन्होंने तो सिर्फ फीस लेनी है !
कई सवाल खडे करती रचना। अच्छा लिखा है।
sach interview bachchon se jyada to parents ka hota hai........aakhir moti fees ka sawaal hai..........agar us par khare utre to admission pakka hai.
रतनजी, सुशीलजी और वंदनाजी आपने मेरा होंसला बढाया. बहुत अच्छा लगा. शुक्रिया अदा करके मैं इसका महत्त्व कम नहीं करना चाहता. मैं बहुत खुश हूँ कि आप लोग मेरे ब्लॉग पर आये.
अकसर इस समस्या पर दोस्तों, रिश्तेदारों पर चर्चा होती है क्यों हम पढाई के नाम पर बच्चों के बचपन को खत्म करते जा रहे हैं। क्या वाकई इस उम्र में वे पढ़ने लिखने के काबिल हो भी पाते हैं, स्कूल में नए बच्चों के साथ एडजस्ट होने का संघर्ष अलग। आपने अच्छी समस्या की तरफ इंगित क्या है
shivraj ji , bahut hi prabhaavshali rachna aur kai sawaalo ko katghare me khade karti hui nazm.. aapne bahut hi jwalant issue par poem likhi hai . meri badhai sweekar karen.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com
गुजर जी बढिया कविता ,तो हमसे क्या पूछेंगे ?यही कि, क्या हम समय दे पायेंगे ,...स्कूली व्यवस्था पर सही -सटीक व्यंग,बधाई
नीलिमा जी, विजय जी और विधु जी आपने मेरा होंसला बढाया. बहुत अच्छा लगा. शुक्रिया अदा करके मैं इसका महत्त्व कम नहीं करना चाहता. मैं बहुत खुश हूँ कि आप लोग मेरे ब्लॉग पर आये.
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