वोट देकर हाथ अभी डीला भी नही पड़ा है
झोली फैलाये वो फिर मेरे दर पर खड़ा है
जाति के नाम मजहब के नाम दे दे बाबा
अदद वोट की रट पकडे मेरे पीछे पड़ा है
पिछली बार माँगा था जिसकी बुराई करके
उसी दल का पट्टा अब गले मैं बांधे खड़ा है
पिछले वादों का तो हिसाब अभी किया नही
नए वादों का और वो पुलंदा लिए खड़ा है
सड़क, नल, बिजली, नौकरी जो चाहे मांगले
फकीर दर पर देखो खुदा बन कर खड़ा है
(रचना पुरानी है लेकिन राजस्थान मैं दिसम्बर मैं विधानसभा चुनाव होने के कारन वर्तमान मैं प्रासंगिक है )
शिवराज गूजर
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