न मात्राओं का गणित है और न ही शब्दों की बंदिश, यह भावनाएं हैं जो चंद लाइनों मैं ब्लॉग पर हैं, इसलिए पड़ते समय भावनाओं को समझें -
यह शहर नही है, अब इंसानों का शहर
हेवानियत हर और यहाँ आती है नजर
बहन-बेटियों की अस्मत घर मैं नही सलामत
कत्लगाह बन गया हैअब तो ख़ुद का ही घर
प्रेमी छूपाते हैं प्रेम को, राखी की आड़ मैं
शेतानियत का ऐसा यहाँ बरपा है कहर
बाकी नही रहा इंसा मैं थोड़ा भी भाईचारा
हवाओं मैं ऐसा घुल गया है साम्प्रदायिकता का जहर
4 comments:
सारे परिवेश में घुल गया है गरल।
क्या लिखें ऐसे माहौल में हम गजल।।
गन्ध से जब सुमन की सुमन हो डरा,
राह क्यो कर बनेगी, धरा की सरल।।
प्रश्न बिखरे बहुत, गुम समाधान हैं?
आदमी बन गये आज हैवान हैं।।
बहुत उम्दा भाव,,, वही पढ़े. :)
बहन-बेटियों की अस्मत घर मैं नही सलामत
कत्लगाह बन गया हैअब तो ख़ुद का ही घर
shabd aur bhaav man ko aandolit karten hain ....shubhkaamnaa
bilkul sahi kaha aapne.haqeeqat hai ye......ek katu satya
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