दो चीजें
पीछा करती हैं हमेशा
इंसान का
उम्मीद और सपने
सपने होते हैं उसके अपने
उमीदें होती हैं उससे दूसरों को
दम तोड़ देते हैं सपने
हमेशा उमीदों के आगे
क्योंकि
वक़्त लगता है
सपनों के पूरे होने मैं
जबकि
उमीदें साथ होती हैं
हरपल
जो अहसास कराती हैं
उसे अपने होने का
किसी से बंधे होने का
पसोपेश मैं पड़ गया है मन
इस दोराहे पर आकर
एक तरफ़ मेरे सपने हैं
दूसरी और हैं उनकी उमीदें
सोचता हूँ
सपने तो मेरे अकेले के हैं
उमीदें मुझसे कितनो को हैं
माँ -बापू को
क्योंकि बेटा हूँ उनका
पाला - पोसा है मुझे
यह सोच कर
सहारा बनूँगा बुडापे मैं
उमीदें हैं, बीवी - बचों को
क्योंकि
पालनहार हूँ मैं उनका
तो फिर क्या अहमियत है
मेरे सपनों की
उनकी उमीदों के आगे
पर
मुझे भी तो वक़्त चाहिए
उनकी उमीदों पर खरा उतरने के लिए
क्या मैं कर सकता हूँ उनसे
कुछ और समय की
उम्मीद
शिवराज गूजर
3 comments:
वाकई बहुत सुंदर रचना है, शायद अब तक की रचनाओं में बेहतरीन . और सच भी तो है उम्मीदें के आगे कब सपने दम तोड़ देते हैं पता ही नही चलता
बहुत ही उम्दा रचना है।सपनों का टूटना उम्मीदो का टूटना नही होता।इन्सानी जज्बातों से जुड़ी हुई आप की रचना बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद।
ati sundar..........insan isi kashmakash mein jeeta hai aur phir ek din ummeedon ke aage sapno ko harna padta hai...........bahut hi yatharthparak prastuti.
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