Thursday, February 5, 2009

दुनियादारी

ना थारी छे, ना म्हारी छे
या दुनिया भाया दारी छे
गरज पड्यां सूं गुड बण ज्या
काम निकलता ही खारी छे
या दुनिया......

आंटी मैं पीसा हो तो
जग बण जावे भाएलो
लक्ष्मीजी जद घर छोड़े
कुण नाती, कुणकी यारी छे
या दुनिया......

पूत कमाऊ हो घर मैं तो
सबने लगे प्यारो सो
बेरुजगार घूमतो बेटो
लागे सबने बेरी छे
या दुनिया......

शिवराज गूजर

5 comments:

समीर सृज़न said...

बहुत सुन्दर भाव हैं.आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ, अच्छा लगा.अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा..

सुशील छौक्कर said...

मीठी सी भाषा में एक सच्ची गहरी बात कह दी जी आपने। बहुत खूब।

Unknown said...

शब्द नहीं मिल रहे तारीफ के लिए .....कड़बी हकीकत को शक्करी शब्दों में लपेटकर लिखा है.बहुत खूब .बधाई हो शिवराज जी .

shivraj gujar said...

समीरजी , सुशीलजी ,चंदरशेखरजी बहुत अच्छा लगा आप मेरे ब्लॉग पर आए और मेरी होसला अफजाई की. उम्मीद करता हूँ आपका सहयोग यों ही मिलता रहेगा.

Harshvardhan said...

aapke blog par aakar achcha laga
nice post

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