Sunday, February 8, 2009

उम्मीद और सपने

दो चीजें
पीछा करती हैं हमेशा
इंसान का
उम्मीद और सपने
सपने होते हैं उसके अपने
उमीदें होती हैं उससे दूसरों को
दम तोड़ देते हैं सपने
हमेशा उमीदों के आगे
क्योंकि
वक़्त लगता है
सपनों के पूरे होने मैं
जबकि
उमीदें साथ होती हैं
हरपल
जो अहसास कराती हैं
उसे अपने होने का
किसी से बंधे होने का
पसोपेश मैं पड़ गया है मन
इस दोराहे पर आकर
एक तरफ़ मेरे सपने हैं
दूसरी और हैं उनकी उमीदें
सोचता हूँ
सपने तो मेरे अकेले के हैं
उमीदें मुझसे कितनो को हैं
माँ -बापू को
क्योंकि बेटा हूँ उनका
पाला - पोसा है मुझे
यह सोच कर
सहारा बनूँगा बुडापे मैं
उमीदें हैं, बीवी - बचों को
क्योंकि
पालनहार हूँ मैं उनका
तो फिर क्या अहमियत है
मेरे सपनों की
उनकी उमीदों के आगे
पर
मुझे भी तो वक़्त चाहिए
उनकी उमीदों पर खरा उतरने के लिए
क्या मैं कर सकता हूँ उनसे
कुछ और समय की
उम्मीद
शिवराज गूजर




3 comments:

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

वाकई बहुत सुंदर रचना है, शायद अब तक की रचनाओं में बेहतरीन . और सच भी तो है उम्मीदें के आगे कब सपने दम तोड़ देते हैं पता ही नही चलता

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही उम्दा रचना है।सपनों का टूटना उम्मीदो का टूटना नही होता।इन्सानी जज्बातों से जुड़ी हुई आप की रचना बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद।

vandana gupta said...

ati sundar..........insan isi kashmakash mein jeeta hai aur phir ek din ummeedon ke aage sapno ko harna padta hai...........bahut hi yatharthparak prastuti.

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