गोद मैं बच्चा लिए व हाथ मैं झोला लटकाए एक ग्रामीण महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एक दम से वह निराश हो गयी, फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर अटकने कीजगह मिल जाए, वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी , उस पर बस एक युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट पर,
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी,
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच गैलरी मैं ही बेठ गयी, इसके बाद उस खालीसीट को देख कर कईं आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,
तभी एक युवती बस मैं चडी , अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, कोई आएगा, नीचे गया होगा, टिकेट या फिर कूछ लेने , और वह भी खड़ी हो गयी महिला के पास,
बेठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा, इस आवाज पर युवती ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था,
उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,
जी नही, युवक उसी मुस्कान के साथ बोला,
इस पर युवती मुडी और नीचे बेठी उस बच्चे वाली महिला को वहां बेठा दिया,
अब युवक का चेहरा देखने लायक था, वह युवती को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,
शिवराज गूजर
10 comments:
waqai shivraj ji bahut khub. sahi likha hai aapne yun bhi hota hai. agar kabhi waqt mile to mere blog par bhi aayen.
यूँ ही होता है गूजर भाई...
च्च-च! हमें आपसे गहरी सहानुभूति है मित्र.
इस लघुकथा को पढ़ते समय मैं जैसे अंत के बारे में सोच रहा था, वैसा ही मुझे मिला भी! आश्चर्य भी हुआ और अच्छा भी लगा! ऐसे सोच को ध्यान में रखकर ही लघुकथा लिखी जानी चाहिए! यह लघुकथा एक बहुत अच्छा संदेश दे रही है!
बहुत सही लिखा-काश, हमेशा ऐसा होता रहे.
काश सारी युवितया इतनी समझदार हों ।
Bahut badia shivraj bhai
bus per puri kitab likh
maroge kaya !
bahut achcha lekh hai aur gaur farmane ke kabil.
aaj isi ki jaroorat hai
aisi hi samajhdari ki.
samaj ko jagrit karne ka ek achcha prayas hai.
बहुत बढिया लघुकथा, जिन्दगी की सच्चाई को किस बारीकी से देखते हैं आप शिवराज जी।
मानव मानवता को जाने,
अच्छा सबको लगता है।
दर्द पराया अपनाना भी,
अच्छा सबको लगता है।।
इस घटना से नवयुवकों में,
सदबुद्धि आ जाये-
स्वार्थरहित अनुराग जगत में,
सच्चा लगता है।।
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