Monday, February 9, 2009

गीत

गाँव से मेरा ख़त आया है
पढके यार सुनना तुम
कैसे है घरवाले मेरे
सबका हाल बताना तुम

माँ -बापूजी लिखते हैं
कैसे हो लाल हमारे तुम
दूर हो हमसे तो क्या बेटे
यादों मैं पास हमारे हो तुम

हम तो सब खुस हैं यहाँ पर
लिखना हाल तुम्हारा तुम
गाँव से .............

बहना लिखती है भइया मेरे
क्या तुम हमको भूल गए
घर, आँगन, गलियां, चौबारे
क्या तुम सबको भूल गए

शहर मैं जाकर भइया क्या
भूल गए हो प्यार हमारा तुम
गाँव से .................

भाई तुम्हारा छोटा लिखता है
भइया क्यों तड़पाते हो
याद तुम्हारी आती है
फिर क्यों नही तुम आते हो

अबके ख़त मैं लिखना भइया
कब आ रहे हो घर पर तुम
गाँव से ...............

शिवराज गूजर

4 comments:

अनिल कान्त said...

आपने अपनी कविता से घर की याद दिला दी ....बहुत अच्छी लगी ...

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

अभिषेक आर्जव said...

शानदार अभिव्यक्ति !

Vinay said...

सुंदर अभिव्यक्ति


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गुलाबी कोंपलेंचाँद, बादल और शाम

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

sundr rachna

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